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बूढ़ी काकी ने कहा,‘हम कई बार बिना सोचे-समझे बहुत कुछ कह जाते हैं। हमें अहसास नहीं हो पाता कि क्या कह दिया। लेकिन कुछ समय बाद मालूम पड़ता है कि शायद जो नहीं कहना चाहिए था वह कह दिया। जो नहीं करना चाहिए था वह कर दिया। इंसानों के साथ अक्सर ऐसा होता है।’
‘मैंने कई बार जाने-अनजाने बोल दिया। उस समय शायद मुझे नाप-तोल का वक्त न मिला हो, लेकिन शाम को सोते समय मुझे ख्याल आया कि आज कुछ गलत हो गया। मैंने किसी के हृदय को ठेस पहुंचा दी। जब हमें दर्द होता है, तब पता चलता है। दूसरों को दुख देना आसान है। मैं रात भर करवट बदलती रही। सोचती रही कि चंदा जो मेरी सखा थी, उसको कैसा महसूस हो रहा होगा।’
काकी को बीच में रोक कर मैंने कहा,‘शायद बहुत बुरा लगा होगा उसे। ऐसे मौकों पर भला अच्छा कैसे लग सकता है?’
मेरी बात को ध्यान से सुन काकी बोली,‘दिल तोड़ने आसन हैं, जोड़ने मुश्किल।’
मैंने काकी को कालेज में मेरे साथ पढ़ने वाले राम और अंजलि का किस्सा बताया। इसपर काकी तपाक से बोली,‘राम के साथ अंजलि......कुछ अजीब नहीं लगता। ऐसा हो सकता था जैसे राम-श्याम, सीता-गीता, और राम....... बगैरह-बगैरह। आगे कहो।’
मैंने बताना शुरु किया,‘न वे दोस्त थे, न दुश्मन, लेकिन राम को लगता था कि किस्मत ने उन्हें बस यूं ही मिला दिया। शायद इसलिए कि पिछले जन्म की कुछ बातें अधूरी रह गयी हों। खैर, राम कई बार जल्दबाजी में अंजलि को कुछ-न-कुछ अजीब बोल जाता। इसका असर अंजलि के चेहरे पर साफ झलकता। फिर काकी, बिल्कुल आपकी तरह वह रात को सोते समय दिन भर की बातों को याद करता, विचार करता। फिर अंजलि को याद करता कि ऐसा उसने क्यों किया कि किसी को बुरा लग गया हो। वैसे शब्दों की चोट हृदय पर काफी प्रभाव करती है। लेकिन राम अगले दिन या कुछ समय बाद अंजलि से बात कर स्थिति को फिर सामान्य बनाने की कोशिश में लग जाता।’
काकी ने अपनी झुर्रिदार, कमजोर गर्दन को घुमाया। वह बोली,‘लोग ऐसा कर तो जाते हैं, पर बाद में उन्हें एहसास भी होता है। मुझे लगता है इंसान ऐसा ही करते हैं। कुदरत ने उन्हें ऐसी बुद्धि दी है, या समझ से परे है सब कुछ। वैसे, सोच समझकर बहुत कुछ आसान किया जा सकता है। चिंतन सबसे महत्वपूर्ण है। किसी के हृदय को ठेस क्यों पहुंचायी जाये? तुमने राम-अंजलि की बात बताई। उससे राम के व्यवहार के विषय में साफ मालूम लग जाता है। फिर अंजलि की भावुकता का भी पता लगता है क्यों तुमने कहा कि उसका चेहरा बदल जाता है। आगे तुम कहते हो कि राम ठेस पहुंचाकर मामला सुलझा लेता है। यह राम का व्यवहार अजीब नहीं लगता।’
मैंने कहा,‘शायद यह भगवान की मर्जी है कि उन दोनों में विवाद नहीं हुआ। राम को भरोसा होगा कि भगवान सब संभाल लेगा। वैसे हमें आजतक वह ही तो संभालता आया है।’
इसपर काकी ने कहा,‘इंसानों के विचार अगर ठीक तरह से चल रहे हैं तो कुछ नहीं बिगड़ने वाला। मुझे नहीं लगता कि हम कभी विचारों की लड़ाई से पार सकेंगे। हां, उन्हें एक व्यवस्था जरुर उपलब्ध करा सकते हैं। हमें सीखना होगा ताकि किसी को यह न लगे कि हम बुरे हैं। हमें सीखना होगा कि किसी का हृदय कभी न टूटे, कभी न दुखे क्योंकि इससे व्यक्ति भी बिखर जाता है। हमें नहीं कहना होगा वह शब्द जो वाण की तरह धंस जाए।’
‘शायद बहुत सी चीजें कही अच्छे ढंग से जाती हैं, लेकिन उन्हें उस तरह करना मुश्किल होता है।’
इतना कहकर काकी ने विराम लिया। मैं उसकी आंखों को देखता रहा, कितनी शांत थीं।
-harminder singh


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