Thursday, October 1, 2009
इतना पाकर भी खाली हाथ है
पतझड़ कैसा होता है, यह मैं जान गया हूं। पेड़ के सूखने पर उसे कैसा महसूस होता है। यह भी मुझे मालूम हो गया। इंसान और पेड़ सूखने पर एक जैसे लगते हैं। दोनों तरफ जर्जरता है, नीरसता है, और आखिरी वक्त का इंतजार। मगर एक जस्बा है जिसने सूखे ठूंठ को भी इतना बल दिया हुआ है कि वह बाधाओं से मुकाबला करने की रट लगाए है।
आंखों का धुंधलापन कहता है कि उम्र ढल गयी। हां, वक्त बीतता है तो इंसान पुराना हो जाता है। दूर की चीजें साफ नजर नहीं आतीं। सिर्फ आकृतियां दिखती हैं। पोता गोद में उछलता है। उसका उतावलापन मुझमें नयी ऊर्जा भर देता है। मैं बुढ़ापे को भूल जाता हूं। उसके साथ बच्चा बन जाता हूं। ‘‘बाबा मुझे ढूंढो।’’ दूर से कहीं मीठी आवाज आती है। अपनी कमजोर देह और धीमी नजरों से उसे खोजने की कोशिश करता हूं। ‘‘मैं यहां हूं।’’ वह दौड़कर दूसरी जगह छिप जाता है। सिलसिला जारी रहता है। दादा-पोता का मन बहलने का सिलसिला।
इंसानी रिश्तों की मजबूती का परिचय हमें कितनी आसानी से मिल जाता है। प्रेम की डोरी हमें किस तरह जोड़कर रखती है, यह शायद बुढ़ापे से बेहतर कौन जान सकता है। मैं इसका अर्थ समझ चुका।
अपनों के बीच कितना अपनापन है। मुझे लगता है मेरा बेटा संसार का सबसे अच्छा बेटा है। मुझे नाज है उसपर। उम्मीद है हर मां की कोख से ऐसा लाल पैदा हो। इकलौता है, लेकिन कभी नखरे नहीं दिखए। बहू ने मुझे अपने सगे पिता सा दुलार दिया- बहू नहीं बेटी है मेरी वह।
ऐसा अधिक होता है कि मेरे जैसे वृद्धों को अपनों का प्यार नहीं मिलता। मुझे स्नेह इतना मिला, लेकिन मेरा शरीर खुद से ऊबता जा रहा है। कई बार निराश हो जाता हूं। हम कभी-कभी परिस्थितियों के हाथों बिक जाते हैं। इतना कुछ पाकर भी लगता है जैसे हाथ खाली है।
-harminder singh
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
आपका प्रयास शानदार है बधाई
ReplyDelete"लेकिन मेरा शरीर खुद से ऊबता जा रहा है "………जी घबराता है ……पर ज़्यादा से ज़्यादा सोचना है इस आने वाले कल के बारे……
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