सादाब की कहानी अभी पूरी कहां हुई थी। यह उसके जीवन का सच था जो शब्दों के द्वारा बयान किया जा रहा था। उसके एक-एक शब्द को मैंने सहेज कर रखा है ताकि उन्हें अपनी यादों के साथ मिला सकूं। सादाब ने आगे कहा,‘‘उस समय मैंने सोचा था कि मैं बड़ा आदमी बनूंगा। अब्बा रिक्शा चलाते थे। जितनी मेहनत, जितनी सवारियां, उतने पैसे नसीब होते। गरीबों का जीवन दुश्वारियों से भरा होता है। गरीब होना संसार का सबसे बड़ा दुख है। एक-एक पैसे की कीमत कितनी होती है, यह भला गरीब से ज्यादा कौन जान सकता है। हम भूखे कई बार सोये हैं। अम्मी ने हम बच्चों को गोद में बिठाया, कहानी सुनाई, थपका और सो गये। आदत हो गयी थी भूख से लड़ने की भी। भूख संघर्ष करना सिखाती है, जीवन से लड़ना सिखाती है, हताशा और निराशा को अपनाना सिखाती है। हम भी धीरे-धीरे सीख रहे थे।’’
आज रात बहुत हो गई। मैं बहुत कुछ लिख चुका हूं। मन करता है सादाब के बारे में उसका कहा और लिखूं। उसने कहा,‘‘पुलिस वालों ने मेरे अब्बा को एक बार बहुत मारा था। अम्मी उस रात अब्बा के पास बैठी रही थी। अब्बा से एक पुलिस वाले ने माचिस मांगी। उनके पास नहीं थी। वे बीड़ी-सिगरेट-शराब से दूर रहते थे। पांच वक्त की नमाज छोड़ते नहीं थे। लोग उन्हें सच्चा मुसलमान कहते। अब्बा से उस पुलिसवाले ने कहा कि सामने पान की दुकान से माचिस लेकर आ। सीधे-स्वभाव वे एक माचिस ले लाए। फिर उसने कहा कि सिगरेट कौन लाएगा? उसने एक भद्दी गाली दी। अब्बा बोले कि तुमने माचिस को कहा था। इसपर उस पुलिसवाले ने उनके एक चांटा जड़ दिया। अब्बा कमजोर थे, पीछे के बल गिर पड़े। कुछ देर बाद रिक्शा का हैंडल पकड़ उठ खड़े हुए। नीचे मुंह कर रिक्शा ले जाने लगे। पुलिसवाले ने उनकी पीठ पर हाथ मारकर कहा कि अब सिगरेट लेकर आ। अब्बा ने इंकार कर दिया। वे ऐसी नशे की चीजों को हाथ नहीं लगाते थे। न ही उन लोगों के पास बैठते थे जो नशा करते। उस पुलिसवाले ने अब्बा का रिक्शा एक किनारे खड़ा करवा दिया। अब्बा के मुंह पर जोर का थप्पड़ फिर जड़ दिया। अबकी बार अब्बा खड़े रहे। उनका चेहरा लाल हो गया था। उन्हें भी बहुत गुस्सा आ रहा था। उन्होंने अपनी दोनों मुट्ठियां भींच ली थीं। अब जैसे ही पुलिसवाले ने उनपर हाथ उठाया उन्होंने उसे रोक लिया। पुलिसवाला सन्न रह गया। तभी पुलिस की जीप वहां आकर रुक गयी। अब्बा वैसे ही खड़े रहे। पुलिसवाले ने जीप के अंदर झांका और थोड़ी देर बात की। अब्बा उन्हें देखते रहे। कुछ देर में अब्बा को पुलिसवाले जबरदस्ती जीप में डालकर ले गये। आखिर वर्दी के सामने एक गरीब आदमी कर ही क्या सकता है? थाने में ले जाकर उन्हें एक बड़ी टेबल पर उलटा लिटा दिया गया। उनके हाथ-पैर कस कर बांध दिये गये। अब्बा बार-बार उनसे रहम की भीख मांगते रहे। मगर जालिम हंसते रहे, ठहाके लगाते रहे। वे चार पुलिसवाले थे। उनके चेहरे को अब्बा कभी नहीं भूल सकते थे। यह गरीब की किस्मत थी कि वह मजबूर था। इंसान की मजबूरी का कुछ इंसान ही फायदा उठा रहे थे। कैसी बीत रही होगी अब्बा पर? मुझे उस वाकये को अपनी अम्मी से सुनकर बड़ा गुस्सा आता था। अम्मी कई बार अब्बा के बारे में हमें बताती थी।’’
जारी है....
-harminder singh
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