रेत को बहते हुए देखा है मैंने इन नंगी आंखों से। देखा है मैंने पानी को जबरदस्ती करते हुए। तब रेत संघर्ष करती है, पानी उसपर चोट। परिचय होता है यर्थाथ का। कमल की पंखुड़ियां फिसल कर किनारे आ जाती हैं। रेत वहां भी चिपकी है। पानी सूख गया, रेत अभी भी वहीं है।
शांत लगती है, मगर उथलपुथल है कितनी। स्वीकार करना होगा कि उलझन पुरवाई में कभी नहीं खोती। समझना होगा कि एक दिन सब कुछ बह जाएगा, तब न पुरवाई होगी, न पानी लड़ेगा।
किनारों की असमंजस स्थिति मुझे नासमझ बना रही है। पर मैं साफ नहीं धुंधला देखता हूं। क्या पता यह आखिरी किनारा हो?
-harminder singh
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
क्या पता/// भावपूर्ण लेखन!!
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