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मैंने काकी से पूछा,‘‘विपत्ति का भी कोई मतलब होता है। मुसीबतें क्या हमें हौंसला देती हैं?’’
इसपर काकी बोली,‘‘तुम्हारे प्रश्न सुनने में मामूली लगते जरुर हैं, लेकिन उनमें गहराई छिपी होती है। परेशानियां जीवन से जुड़ी हैं। अब हर काम आसान होता जो जीना बिल्कुल नीरस हो जाता। अगर स्वाद एक-सा हो तब आम और अमरुद में फर्क ही क्या रह जायेगा? इसी तरह जीवन कई रंगों से भरा है। इसके स्वाद निराले हैं। जब हम खुशी से रह सकते हैं तो दुख होने पर घबराहट कैसी? मुसीबतें रास्तों को कठिन जरुर बनाती हैं। लेकिन इनसे काफी कुछ सीख मिलती है।’’
‘‘विपत्ति के समय इंसान कोई अपने-पराये का भेद पता लगता है। उसे इस कारण कई मसलों को खुद सुलझाना पड़ता है। तब वह सोचता है कि उसे अकेले मैदान में मुकाबला करना है। इसलिए वह हौंसले से लड़ता है। हौंसला हममें होता है, और मुश्किल के वक्त हमें खुद की पहचान अच्छी तरह हो जाती है। हमारी क्षमता का ज्ञान जब हम जानने लगेंगे तो जीना उतना कठिन नहीं होगा।’’
‘‘परेशानियों को अपने नजदीक पाकर हम खुद में जस्बा पैदा करते हैं ताकि उनसे पार पा सकें। इरादे मजबूत हैं तो परेशानियां उतनी कमजोर नहीं बनातीं। मैं यह जरुर कहना चाहूंगी कि हम यदि हर बात का मायना समझें तो विपत्ति का मतलब भी यकीनन समझ आ जायेगा।’’
काकी पुराने दिनों को याद करती है। वह कहती है,‘‘हमारा परिवार बुरे दौर से गुजरा। मैं उन दिनों पढ़ रही थी। पिताजी बीमार हो गये। उनकी नौकरी चली गयी। मेरी फीस को पैसा नहीं था। एक और पिताजी की महंगी दवाईयां, उसपर से घर का खर्च। मां ने रिश्तेदारों से मदद मांगी। एक-दो बार किसी ने मुंह नहीं सिकोड़ा। बाद में हम अकेले पड़ गए। तब मां ने छोटी नौकरी की। उसका हौंसला बढ़ता गया और उसने घर की चौखट में न रहकर बाहर कदम बढ़ाये। मां को रिश्तेदारों ने ताने दिये। पर वह घबराई नहीं। न होने से अच्छा, कुछ होना होता है। मेरी मां अगर उस समय पीछे हट जाती तो कहानी कुछ और होती। उसने परेशानी में जाना कि वह खुद क्या कर सकती है? उसका हौंसला समय के साथ मजबूत हुआ। लेकिन जो व्यक्ति बुरे वक्त को नियति मानकर चलते हैं, वे पीछे छूट जाते हैं। उनकी स्थिति खराब से भी बेकार हो जाती है। मैंने पाया कि हमारे जीवन में विपत्ति का बड़ा हाथ होता है क्योंकि वह हमें जीने का मतलब सिखाती है, अच्छे-भले का ज्ञान कराती है और हौंसले से लड़ना सिखाती है। तभी इंसान को जीवन की कीमत का पता लगता है।’’
काकी के सफेद बालों में फीकापन था। यह बुढ़ापे की देन है और बुढ़ापा अपने साथ बहुत कुछ परिवर्तित करता है। काकी को खैर कोई मलाल नहीं। वह जीवन की सच्चाई का सामना मुस्करा कर कर रही है।
वह आगे कहती है,‘‘मैंने संकट को कभी संकट नहीं माना। मुझे पता है यह लंबा नहीं होता। इसकी उम्र कम होती है। लेकिन सुख-दुख का अनुभव भी इसी समय हो जाता है। अगली बार के लिए मुकाबला करने की क्षमता को हम अपने अनुभव के आधार पर विकसित करते हैं। जो गलतियां पूर्व में हो चुकी होती हैं, उन्हें न दोहरा कर हौंसले के साथ आगे बढ़ते हैं। हौंसला जीवन का आधार भी है। बिना इसके जीवन की जंग नहीं जीती जा सकती। तो जीवन यह कहता है कि वह असंख्य उतार-चढ़ाव से भरा है। उसमें गोते खाने पड़ते हैं और नाव किनारा मांगती है चाहें वह उसे पहचानती न हो। संघर्ष हर पल मौजूद है। इसके बिना जीवन संभव भी तो नहीं।’’
-harminder singh


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बुजुर्गों की कहानियां हमें नई हकीकतों से निपटने का आधार देती हैं।
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