सादाब से मैंने कहा,‘जिंदगी को शायद यही मंजूर था कि वह एक बसी-बसाई दुनिया को पल भर में उजाड़ दे।’
वास्तव में हम ऐसे मौकों पर कुछ कर नहीं सकते। करने की क्षमता का ह्रास हो चुका होता है।
सादाब बोला,‘वक्त की मार से कुछ भी हो सकता है। हमारे मामा की इकलौती बहन हमारी अम्मी उससे मिलना चाहती थी। मामा सही आदमी नहीं था। उसकी मोहल्ले में रोज मारपीट होती थी। उसने कई बार चोरी की तथा रंगें हाथों पकड़ा जा चुका था। हराम का माल खाने की जैसे उसे आदत पड़ गयी थी। मोहल्ले के लोग कहते थे कि उसने अपनी पत्नि जेबा को जलाकर मार दिया था। जेबा के परिवार वाले काफी गरीब थे, इसलिए उसकी दो बच्चियों की खातिर उसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट नहीं की। उनका कहना था कि बाप उनसे अच्छी तरह बच्चियों की देखभाल कर लेगा। मामा पूरा ढोंगी था। वह जेबा के घरवालों के सामने गिड़गिड़ाया और बोला कि वह दोनों लड़कियों को जान से ज्यादा मोहब्बत करेगा। जेबा को उसने बताया कि खाना बनाते समय खौलते तेल की कड़ाही उसके ऊपर गिर गई, जबकि वह जमीन पर रखे ईंटों के चूल्हे पर रोटी बनाती थी। शिकायत के लिए सबूत चाहिए था। मोहल्ले वालों को कोई मतलब न था। एक औरत ही तो मरी थी। बच्चे बाहर खेल रहे थे और घर में मामा जेबा से उसकी जिंदगी छीन रहा था। कारण क्या था यह मुझे आजतक पता नहीं चल सका। जेबा कुछ पल के लिए छटपटाई होगी। फिर उसकी सांसों को विराम लग गया होगा। अक्सर मौत से पहले जिंदगी इसी तरह छटपटाती है। मेरा खून खौल जाता है यह सब कहकर, लेकिन मैं कहता हूं। अभी तक मैं चुप रहा, सोता रहा। चुप्पी कब तक मेहमानों की तरह रहती, उसे टूटना था। तुमने पूरी हकीकत अभी जानी कहां है? मामा का असली रंग अभी बाकी था। अपनी मौत का कारण वह खुद था। इंसान शायद अपनी मौत का रास्ता खुद चुनता है, वह भी इंसान ही था जो हैवान से कम नहीं था। उसकी मौत न होती तो वह न जाने और क्या करता?’
--to be contd.
-harminder singh
हर प्रतिक्रिया का कारण कोई क्रिया ही होती है ...
ReplyDeleteकई अपराधिक घटनाओं के पीछे दिल दहला देने वाली वास्तविकताएं छिपी होती हैं ...
अगली कड़ी के इन्तजार में ...!!