बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Wednesday, February 24, 2010

संबंधों के दायरे में

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कभी-कभी काकी को लगता है कि वह मुझसे घृणा क्यों नहीं करती?

उसे यह अटपटा लगता है। काकी को मुझसे लगाव है, यह मैं जानता हूं। उसकी बातों को मैंने बारीकी से समझाया और पाया कि वाकई बुढ़ापा अनुभव लिए होता है।

समय के साथ-साथ बूढ़ी काकी का मोह मेरे प्रति बढ़ता गया। उम्र के फासले को मोह ने छोटा बना दिया। मैं उसकी थकी जिंदगी को नजदीक से देखता हूं तो पाता हूं कि इन आंखों ने जिंदगी को कितने करीब से देखा है।

बूढ़ी काया है, फिर भी काकी को एहसास नहीं कि वह कब अलविदा कह दे, क्योंकि उससे संवाद करते समय ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। उसने हमेशा मुझे मुस्कराकर कई बातों से अवगत कराया है। यह मोह के कारण उपजी स्थिति है या कुछ ओर।

मुझे यह सोचने पर विवश करता है कि बूढ़े लोग लगाव इतना क्यों करते हैं? क्यों वे प्रेम की एक छींट से खुद को भिगो देते हैं? क्यों उनका प्रेम उनकी सूखी आंखों से छलकता है? क्या बुढ़ापा प्रेम का भूखा होता है? वृद्धों का मन क्यों मामूली बात पर पिघल जाता है?

काकी ने कहा,‘‘मन का क्या, वह तो बहता है। प्रेम की चाह किसे नहीं। मन को बंधना नहीं आता और प्रेम को रुकना। दोनों ही इंसान के संगी हैं। तुमने बचपन में मां-बाप का दुलार देखा। उन्होंने तुम्हें कितना कुछ दिया। सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने तुम्हें जीवन दिया। इस संसार में तुम उन्हीं की वजह से हो। तुमने उनसे घृणा की होगी, लेकिन वे तुम्हें सदा दुलार ही करते रहेंगे। बूढ़ों को अपने ही छोड़ जाते हैं, जबकि बूढ़े लोग तमाम जिंदगी उनके मोह में जकड़े रहते हैं। औलाद का सुख क्या होता है, यह वे ही जानते हैं।’’

‘‘मेरी जिंदगी अधूरी है, यदि मैं अपने माता-पिता से दूरी बना लूं।’’ मैंने कहा।

इसपर काकी बोली,‘‘बिल्कुल इंसान इंसान के बिना पूरा नहीं। हम संबंधों के दायरे में जीते हैं। यह किसी ने सिखाया नहीं, स्वत: है। जरुरतें मिलजुलकर पूर्ण होती हैं। इंसानियत सिखाती है कि जुड़कर चलो। रिश्ते यहीं उत्पन्न होते हैं। रिश्ते टूटते जरुर हैं, लेकिन उनका अंत नहीं होता। इंसान को जीना यही सिखाते हैं। इसलिए जीवन को पूर्ण करने के लिए कुछ बंधनों में रहना पड़ता है। माता-पिता या उन्हें तुमसे लगाव है, उनकी भावनाओं को समझना जरुरी है।’’

‘‘रही बात घृणा कि तो उसकी उपज भी इंसान ही करते हैं। जहां प्रेम नहीं, वहां घृणा मंडराती है। इंसान को इंसान से ही समस्या है। जबकि लगाव करके हम अपनों में रहना सीखते हैं। बुढ़ापे में बहुत कुछ बदल जाता है। मोह बढ़ता जाता है, क्योंकि वक्त कम होता है। उतने में अपनों का साथ पाने की इच्छा होती है. शायद उनका सुख आसानी से हमें संसार छोड़कर जाने दे। शायद हौंसला दे जाए, ताकि शेष वक्त को उनके सहारे बिता सकें। मन की गहराई को बुढ़ापा जानता है। उसे मालूम है कि कितना कुछ हासिल कर चुका। उसे यह भी पता है कि बहुत कुछ पाकर, जीवन अभी तक प्यासा है।’’

काकी ने खिड़की से खुले आसमान को निहारा। वह काफी देर तक सफेद बादलों की चमक में खोई रही। उसने पलकों को नीचे किया, आंखों को थोड़ा आराम दिया।

मैंने सोचा कि बुढ़ापा समय को पढ़ रहा है। शनै: शनै: जीवन की अंतिम उड़ान की तैयारी कर रहा है। यहां पलकों को भिगोने की जरुरत है, मन भरा जरुर है, लेकिन खुशी उस बात की है कि बुढ़ापे को सब्र बहुत है।

-harminder singh

1 comment:

  1. प्रेम का भूखा तो हर इंसान होता है ...सिर्फ बुढ़ापा ही नहीं ....
    बस फर्क यही है कि बुढ़ापा आते आते विकल्प कम होते जाते हैं ....

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>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

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...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
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किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
-Ravindra Vyas WEBDUNIA.com