Friday, October 9, 2009
हालातों के हाथ मजबूर
हालातों को करीब हम खुद लाते हैं। हालात हमसे नहीं कहते कि हमें अपने साथ लेकर चलो। सोचने दो, मुझे बहुत कुछ सोचना है अभी। शायद पूरी जिंदगी सोचता ही रह जाऊं। काश, काश मैं कुछ कर पाता। अब क्या हो सकता है? नये जेलर ने मुझे घूरा था। उसने मुझे दो बेंत भी मारे। मेरी डायरी के पन्ने उलट-पुलट किये। फिर डायरी को एक कोने में फेंक दिया। मैंने इसका विरोध किया। उसने मेरा दो दिन का खाना रोक दिया। मैं गुस्से में हूं। हालातों के हाथों मजबूर इंसान भला कर भी क्या सकता है। हां, मैं यहां इतना अदना सा हो गया हूं, कुछ भी तो नहीं कर सकता। दीवारें हैं, इंसान हैं। उनके बीच में अंजानों की तरह नियति को कोस रहा हूं। चुप हूं क्योंकि यहां चुप रहने में ही भलाई है, सहने में ही भलाई है। एकांत नहीं है, मन शांत नहीं है। कठोरता और क्रूरता की आदत को रोकना नामुमकिन है। इन्हें मुस्कराना, प्रेम से पेश आना किसी ने नहीं सिखाया। जेलर के व्यवहार से मैं काफी निराश हूं क्योंकि मैं विवश भी हूं। विवशता में इंसान बंधे हुए हाथों का हो जाता है। उसका हौंसला सिर्फ चिल्लाता रह जाता है, बौखलाता रह जाता है, लेकिन अंदरुणी फड़फड़ाहट को सुनने वाला कोई नहीं होता है। केवल हम स्वयं ही सह जाते हैं, सहते रह जाते हैं। एकटक निहारते रह जाते हैं, इतना कुछ कहना चाहते हैं, कह नहीं पाते। मन घुटता रहता है और इसका निदान कहीं नजर नहीं आता। उपाय ढूंढते हुए..................बस कुछ हासिल नहीं हो पाता।
-harminder singh
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
मार्मिक।
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