एक साधारण दिखने वाली वृद्धा जिसे अपने बच्चों की बड़ी फिक्र है, जब अपनी बेटी से अरसे बाद मिली तो उसकी आंखें भर आयीं। ढलती उम्र में भी पूरे जस्बे के साथ जीने वाली रामकली जी बहते प्रेम को न रोक सकीं। बातें हुईं, कल की, आज की और आजकल की।
रामकली जी स्वभाव से सीधी हैं। उनका व्यवहार हर किसी को प्रभावित कर सकता है। कम बोलती हैं, मगर शब्द मायने वाले होते हैं। घर का काम करती हैं और दिन भर काम में लगी रहती हैं। बहुओं से ज्यादा साफ-सफाई रखने में गांव वाले उन्हें जानते हैं। उनका कहना है,‘खाली रहकर जीवन भी क्या जीना। काम करना ही तो ध्येय है। हमारे जैसे बूढ़े चलते-फिरते रहेंगे तो ध्यान बंटा रहता है। बुढ़ापा बोझ नहीं लगता, न खुद को, न बच्चों को।’
उनकी बेटी जब सब्जी काटने लगी, उन्होंने कहा कि ला बेटी मैं हाथ बंटा दूं। संयोग से उसी समय मैं वहां पहुंचा। उनसे काफी देर तक बातें होती रहीं। उन्होंने आलू छीलते हुए कहा,‘जीवन की परतें धीरे-धीरे बुढ़ापे तक खुलने लगती हैं। मेरे जैसी वृद्धा तुम्हारे जैसे लोगों को अनुभव जरुर करा सकती हैं ताकि तुम्हारा मार्गदर्शन हो सके। सच तो यह है कि हमारे पास अब कुछ बचा कहां है, सिवाय सीखों, उपदेशों के।’
तब मैं बोला,‘अम्मा जी, यही तो काम की चीज है।’
रामकली जी ने ढेरों बातों का पिटारा खोल दिया। बताती चली गयीं बहुत कुछ, धीरे-धीरे, हौले-हौले। उनकी बेटी ने शाम का भोजन तैयार कर लिया था। मुझसे भोजन का आग्रह किया गया। मैंने केवल एक कप प्याला चाय पी।
-harminder singh
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
यही तो काम की चीज है-काश!!सभी युवा ऐसा ही सोचें....बुजुर्गों के अनुभवों के बारे में.
ReplyDeleteबुजुर्गों का अनुभव बहुत काम की चीज है ....यदि वे किसी पूर्वाग्रह के बिना सिखाएं तो ....निश्चित ...!!
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