Tuesday, January 19, 2010
पाया क्या इतना जीकर?
‘‘हम ख्वाहिश उन चीजों की करते हैं, जो हमारे पास नहीं।’’ बूढ़ी काकी बोली।
‘‘अक्सर हम भूल जाते हैं कि जो हमारे पास है, बहुतों के पास उतना भी नहीं।’’
‘‘पाना बहुत चाहते हैं, दूसरों के लिए हृदय में जगह बिल्कुल नहीं। फिर हम कैसे संतुष्ट रह सकते हैं? त्रुटियां बाहर नहीं, हमारे भीतर हैं। संतुष्ट रहने के लिए मन को भरना पड़ता है। खाली चीजें शोर बहुत करती हैं। जबतक दूसरों को बढ़ता देख हम मन मसोसते रहेंगे, कुछ अच्छा नहीं होगा। आशा करो, लेकिन उसकी पूर्ति करनी भी जरुरी है।’’
‘‘इंसान भागता है इधर-उधर। कुछ पाने की हसरत है। हासिल इतना हुआ, अब उतना भी चाहिए। हृदय की इच्छा कभी पूर्ण नहीं होती। हृदय की सुनने वाले ठोकर जल्दी या देर से खाते हैं। मगर ठोकर होती पक्की है। खुशी ढ़ूंढने आये थे, दर्द लेकर जा रहे हैं।’’
‘‘जिंदगी इसी तरह गुजर जाती है। बुढ़ापे में भी एकांत नहीं मिलता। फिर कहते हैं-‘पाया क्या इतना जीकर?’ शायद कुछ नहीं- सिवाय दर्द और दुख के। इससे तो जन्म ही न लिया होता। पहले मां को दर्द दिया, अब खुद दुखी होकर जाना होगा। रोते हुए आये थे, रोते हुए जायेंगे। तब भी आंसू नहीं थे, अब भी नहीं होंगे।’’
मैंने काकी से कहा,‘‘इतना कुछ तो मिला हमें जीकर। आप कहती हो, जीने से हासिल कुछ नहीं हुआ।’’
इसपर काकी बोली,‘‘यह बात खुद से बूढ़े होकर पूछना। तब तुम उत्तर ढूंढ सको। कई बार कुछ सवाल ऐसे होते हैं, जिनका उत्तर तमाम जिंदगी नहीं मिल पाता, लेकिन लंबा समय बीत जाने के बाद उत्तर खुद-ब-खुद सामने आ जाता है। शायद वह ईश्वर की मर्जी होती है।’’
‘‘हमारे जैसे वृद्ध स्वयं से इतने सवाल पूछ लेते हैं कि संशय का कोहरा घना होने लगता है। पता है, हमें बादल छंटने का इंतजार नहीं होता। जीवन के सारे रस जब छिन जाते हैं तब एहसास होता है कि अरे, हम बूढ़े हो गए। जिंदगी लगती लंबी थी कभी, अचानक इतनी छोटी कैसे हो गयी? ऐसा लगता है जैसे कल एक सपना था।’’
‘‘वास्तव में हमने जर्जरता को पाया इतना जीकर। बुढ़ापा हासिल किया इतना जीकर। थकी काया को ढोने का इंतजाम किया इतना जीकर। रि’तों को जोड़ा-तोड़ा, बुरा-भला किया जीकर। कुछ नहीं, फिर भी सबकुछ किया हमने। सिर्फ पहचान नहीं की खुद की, क्योंकि हम संसार में खो गए। उन चीजों को पाने की कोशिश की जो हमारे साथ आगे नहीं जाने वालीं। खोकर खुद को फिर पाया क्या हमने इतना जीकर?’’
-harminder singh
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
खुद को नहीं पहचाना तो पाया क्या जी कर ...
ReplyDeleteआपके जीवन ने किसी और जीवन को समृद्ध किया ...उन्हें जीवन दिया ...इतना कुछ तो किया ...!!
जीवन कभी हंसता है, कभी रोता है
ReplyDeleteइतना कुछ करकर वह कुछ नहीं खोता है,
यह सच है कि हमने जीवन को इतना जिया
पाया इतना, लेकिन फिर भी लगता है जैसा कुछ पा नहीं सके
.धन्यवाद, वाणी जी
आपके बोये बीजों का फल ही दुनिया खा रही है, यह अहसास ही कितना सुखद है. उसे अहसासिये.
ReplyDeleteआत्मान्वेषण को प्रेरित करता लेखन
ReplyDeleteकोई भी इंसान इस दुनिया में अपना जीवन ईमादारी से जीता हुआ सारी परेशानियों से दो-चार होता हुआ....अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की कोशिश करता हुआ ..एक पल को भी अगर ईश्वर के प्रति आस्था रखने में अगर सक्षम हो जाता है..तो उसने एक सफल जीवन जीया है...
ReplyDeleteयह सच नहीं है की उन्होंने कुछ नहीं किया...अपनी क्षमता, अपने सामर्थ्य से अगर एक भी जीवन को सही दिशा दी किसी ने तो वही बहुत बड़ी उपलब्धि है....
हर दिन खुद की जर्जर काया को ढो लेना भी एक उब्लाब्धि है...उपलब्धि है ईश्वर की दी हुई ज़िन्दगी का सम्मान करते हुए उसे जी जाना...