
पतझड़ कैसा होता है, यह मैं जान गया हूं। पेड़ के सूखने पर उसे कैसा महसूस होता है। यह भी मुझे मालूम हो गया। इंसान और पेड़ सूखने पर एक जैसे लगते हैं। दोनों तरफ जर्जरता है, नीरसता है, और आखिरी वक्त का इंतजार। मगर एक जस्बा है जिसने सूखे ठूंठ को भी इतना बल दिया हुआ है कि वह बाधाओं से मुकाबला करने की रट लगाए है।
आंखों का धुंधलापन कहता है कि उम्र ढल गयी। हां, वक्त बीतता है तो इंसान पुराना हो जाता है। दूर की चीजें साफ नजर नहीं आतीं। सिर्फ आकृतियां दिखती हैं। पोता गोद में उछलता है। उसका उतावलापन मुझमें नयी ऊर्जा भर देता है। मैं बुढ़ापे को भूल जाता हूं। उसके साथ बच्चा बन जाता हूं। ‘‘बाबा मुझे ढूंढो।’’ दूर से कहीं मीठी आवाज आती है। अपनी कमजोर देह और धीमी नजरों से उसे खोजने की कोशिश करता हूं। ‘‘मैं यहां हूं।’’ वह दौड़कर दूसरी जगह छिप जाता है। सिलसिला जारी रहता है। दादा-पोता का मन बहलने का सिलसिला।
इंसानी रिश्तों की मजबूती का परिचय हमें कितनी आसानी से मिल जाता है। प्रेम की डोरी हमें किस तरह जोड़कर रखती है, यह शायद बुढ़ापे से बेहतर कौन जान सकता है। मैं इसका अर्थ समझ चुका।
अपनों के बीच कितना अपनापन है। मुझे लगता है मेरा बेटा संसार का सबसे अच्छा बेटा है। मुझे नाज है उसपर। उम्मीद है हर मां की कोख से ऐसा लाल पैदा हो। इकलौता है, लेकिन कभी नखरे नहीं दिखए। बहू ने मुझे अपने सगे पिता सा दुलार दिया- बहू नहीं बेटी है मेरी वह।
ऐसा अधिक होता है कि मेरे जैसे वृद्धों को अपनों का प्यार नहीं मिलता। मुझे स्नेह इतना मिला, लेकिन मेरा शरीर खुद से ऊबता जा रहा है। कई बार निराश हो जाता हूं। हम कभी-कभी परिस्थितियों के हाथों बिक जाते हैं। इतना कुछ पाकर भी लगता है जैसे हाथ खाली है।
-harminder singh
आपका प्रयास शानदार है बधाई
ReplyDelete"लेकिन मेरा शरीर खुद से ऊबता जा रहा है "………जी घबराता है ……पर ज़्यादा से ज़्यादा सोचना है इस आने वाले कल के बारे……
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