बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Wednesday, January 7, 2009

अनुभव अहम होते हैं

हम खोकर भी बहुत कुछ पा लेते हैं और कभी-कभी बैठे-बिठाये लुट जाते हैं। अपनी तकदीर खुद लिखने की कोशिश करते हैं। अनजाने में अनचाही राहों पर निकल पड़ते हैं। किस लिये, आखिर किस लिये करते हैं हम यह सब। हमारे अनुभव हमें बताते हैं कि हम क्या भूल गये, क्या तैयारी बाकी रह गयी



जीवन दर्शन मुझे बूढ़ी काकी करा रही थी। उसकी बातों में मैं खो सा गया था। बुजुर्गों के साथ वक्त बिताने का समय मुझे अधिक मिला नहीं, लेकिन कुछ वक्त में काफी सीख प्राप्त की। अपने विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिये और अनुभव पाने के लिये यह किसी तरह भी कमतर नहीं था।

अनुभव जीवन में अहम होते हैं। सीखना हमारी प्रवृत्ति है और नये-नये पड़ावों से नये-नये अनुभव होते हैं। काकी का अनुभव उतना ही पुराना है जितना कि उसका इस जीवन से रिश्ता।

काकी शायद मन की बात भी भांप लेती है, बोली,‘जीवन को पुराने-नये से कोई मतलब नहीं। वह बस अंतिम सांस तक ठहरना जानता है, फिर किसे पता क्या है? जीवन जीकर ही अनुभव पाया जाता है। ऊंचे-नीचे रास्ते यूं ही नहीं बने होते। इनपर चलकर सच्चाई से सामना होता है और यह सच जीवन का सच है।’

‘हम खोकर भी बहुत कुछ पा लेते हैं और कभी-कभी बैठे-बिठाये लुट जाते हैं। अपनी तकदीर खुद लिखने की कोशिश करते हैं। अनजाने में अनचाही राहों पर निकल पड़ते हैं। किस लिये, आखिर किस लिये करते हैं हम यह सब। हमारे अनुभव हमें बताते हैं कि हम क्या भूल गये, क्या तैयारी बाकी रह गयी। अगर उन घाटियों से न कभी गुजरना हुआ तो हम उनसे कुछ नहीं सीख पाते। आसानी से हर काम करने लगते तो सरल भी कठिन लगता।’

‘धूप चिलचिलाती है, ठंड ठिठुरन भरी है, फिर भी जिंदगी हंसती-खेलती चलती है। यह सब इसलिये ताकि जिंदगी जीने वाले के लिये बोझ न लगे। अपनी रफ्तार में चलने का अपना आनंद है, लेकिन कईयों को लगता है कि कहीं उन्हें ठोकर न लग जाये। कभी-कभी नहीं कई बार ऐसा होता है कि अनजाने रास्तों पर निकलने की जिद कर बैठते हैं। मुझे यह सुकून नहीं पहुंचाता। हर किसी की चाह होती है, मगर जिद नुक्सान भी करती है।’
मैं हमेशा उनसे कहानी सुनता आया था। शायद काकी यह समझती है कि मैं जीवन के पहलुओं को उनसे समझूं। एक वृद्धा का अनुभव किसी को कुछ सिखा जाये तो इसमें क्या बुराई है?

बुरी लगती हैं वे बातें जब कोई आपसे कहता है कि बूढ़ों से बचके रहो। उनकी बातों से हमारा मेल कैसा? उनका जमाना पुराना था, अनुभव पुराने होंगे, वे नये जमाने को क्या जानें? बगैरह, बगैरह।

ऐसे लोग अक्सर भूल कर बैठते हैं। बुढ़ापा अनुभव लिये होता है। जीवन की सच्चाई से रुबरु हुआ होता है। पूरी उम्र का सार होता है बुढ़ापा। अनगिनत उतार-चढ़ावों को देख चुका होता है बुढ़ापा। परिवर्तनों का अहसास, हवा का रुख, दुख और सुख, सब कुछ सह चुका होता है बुढ़ापा। फिर क्यों बुढ़ापे से बचकर बैठने की सलाह दी जाती है? फिर क्यों उनके अनुभवों, सीखों से इतर रहते हैं हम? जबकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि बुढ़ापा मुस्कराता हुआ कहीं न कहीं खड़ा हमारा इंतजार कर रहा है। हम उसे जानकर समझ नहीं रहे या कुछ और बात है।

-Harminder Singh

3 comments:

  1. बहुत सुंदर. हमें एक बात याद आ गयी. एक मित्र ने नौकरी छोड़ दी. अब उसके पास वक़्त ही वक़्त था. मानो रिटाइर ही हो गया हो. एक दिन वा अपने पुराने दफ़्तर जाता है. वहाँ एक मेडम ने पूछा कैसे बाजपई जी आजकल कैसे टाइम पास हो रहा है. बाजपई जी ने तुरंत उत्तर दिया, मेडम, आप भ्रम में जी रही हो. टाइम को हम पास नही करते बल्कि वो हमे पास आउट कर रहा है. कब सीखोगे.

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  2. singh ji comp ki adhik jaankaar nahi hoon bhasha samajh nahi aai

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  3. दोस्त, आपने समाज के मुंह पर एक करारा सा तमाचा जड़ा है ---शायद इस से ही कुछ शर्म आ जाये आज के समाज को ----

    बुढ़ापा अनुभव लिये होता है। जीवन की सच्चाई से रुबरु हुआ होता है। पूरी उम्र का सार होता है बुढ़ापा। अनगिनत उतार-चढ़ावों को देख चुका होता है बुढ़ापा। परिवर्तनों का अहसास, हवा का रुख, दुख और सुख, सब कुछ सह चुका होता है बुढ़ापा। फिर क्यों बुढ़ापे से बचकर बैठने की सलाह दी जाती है?

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coming soon1
कैदी की डायरी......................
>>सादाब की मां............................ >>मेरी मां
बूढ़ी काकी कहती है
>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



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>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
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किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
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इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
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