मुझे अच्छी तरह याद है काकी ने मेरी मां को इसलिए डांटा था क्योंकि उन्होंने किसी गलती पर मुझे एक चांटा मारा था। मैं काफी देर से रो रहा था। मेरा गाल सुर्ख लाल हो गया था। मां का क्रोध शांत होने का नाम नहीं ले रहा था और काकी.....। और काकी मुझे पुचकार रही थी। उसने मां को किसी तरह समझाया कि बच्चा है, गलती हो गई, क्या मासूम को पीटकर गलती सुधर जाएगी।
बूढ़ी काकी को मैंने उस घटना का स्मरण कराया। मैंने कहा,‘गलतियां हम अनजाने में करते हैं और जानबूझकर भी। दोनों का रिश्ता परिणामों से होता है।’
काकी ने कहा,‘सोच समझकर की हुइ त्रुटि मायने रखती है। वह किसी को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से की गई होती है या उससे स्वयं को कष्ट भी हो सकता है। गलतियां न हों यह हमें समझना चाहिए। अब अनजाने में हुए गलत कार्य आपने जानकर तो किये नहीं होते, बस हो जाते हैं। इसे हम धोखा होना भी कह सकते हैं। धोखा किसी से कभी भी हो सकता है- एक अबोध बच्चे से भी और समझदार नौजवान से भी।’
‘हमारी गलतियां सबक होती हैं ताकि भविष्य में ऐसा न हो। इतना समझकर भी हम नहीं संभले तो अपने नुक्सान के जिम्मेदार हम खुद हैं। छोटी-छोटी गलतियां अक्सर बड़ी बन जाया करती हैं। मामूली दरारें विशाल भवनों को समय के साथ कमजोर करती रहती हैं क्योंकि दरारें पहले छोटी होती हैं बाद में बड़ी हो जाती हैं। सबक बहुत अहम हैं। आगे खाई है, पहले गिर चुके हैं, फिर क्यों उस और बढ़ रहे हैं? यह गलती हमारी है। इसका खामियाजा हम ही भुगतेंगे।’
बचपन में सबक सिखाये जाते हैं। गलतियों पर दंड दिया जाता है। अपेक्षा की जाती है कि फिर ऐसा न हो। कई मौकों पर समझा-बुझाकर काम चल जाता है, लेकिन कई बार दंड की नौबत आ जाती है। कुछ बालक दंड से सुधर जाते हैं, कुछ नहीं।
हमें बहुत कुछ सिखाता है। मुझे लगता है कि हम संभल कर चलें तो कई चीजें आसान हो जाती हैं। फिर खाई में गिरने का डर भी नहीं रहता। मुश्किलें इसी तरह आसान हो जाती हैं। मुझे मेरे बड़ों ने यही सिखाया है कि घबराओगे तो रुक जाओगे और हमें आगे बढ़ने के लिए घबराना बिल्कुल नहीं है। रुकावटें आयेंगे हमें भूलें होंगी लेकिन उन्हें सुधारकर और कुछ नया सीख कर आगे बढ़ेंगे। यह सही भी है।’
काकी का जीवन आसान नहीं रहा। उसने कहा,‘इंसान गलतियों-बुराईयों का पुतला है। तो यह सच है कि लोग पूरी तरह धुले नहीं हैं। बिना दोष के केवल भगवान है। कुछ इंसान भी भगवान कहे जाते हैं, लेकिन वे इंसान ही होते हैं भगवान नहीं। मेरा मानना है कि यदि मैं भूल करती जाउंगी तो मैं उसकी आदत पाल बैठूंगी, जो ठीक नहीं, जबकि आदतें उनकी होनी चाहिएं जो हमें बेहतर कर सकें। एक-एक सीढ़ी चढ़ने को हौंसला चाहिए होता है। मैं भरोसा रखती हूं खुद पर और मन से कहती हूं कि हां, मैं कर सकती हूं। मैंने कर लिया तो खुद को धन्यवाद देती हूं। यहां विश्वास चाहिए होता है जो मुझमें अभी तक वैसा ही है।’
‘मैं साफ-साफ कहती हूं कि सबक गलतियों से ही सीखे जाते हैं। यह हमें प्रेरणा भी देता है ताकि अगली बार ऐसा होने पर हम संभल सकंे। जीवन में उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं। सच्चाई से सामना यहीं तो होता है। जब मुश्किलें आती हैं तब हमें ठिठकन सी महसूस होती है।’
-harminder singh
Tuesday, May 5, 2009
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बहुत सही कहा काकी ने।
ReplyDeleteघुघूती बासूती