मैंने काकी से पूछा-‘हम यूं ही भागते रहेंगे और यह दौड़ कभी खत्म नहीं होगी। जीवन का निष्कर्ष निकलेगा या नहीं।’
काकी ने आंखें मूंद लीं। कुछ पल की चुप्पी के बाद उसने कहा,‘किस निष्कर्ष की बात कर रहे हो? जीवन का मतलब किसी परिणाम से नहीं है। वह तो केवल जीना और मरना जानता है। भोले हैं हम जो उस विषय को बार-बार कहते रहते हैं जबकि मकसद का आज तक पता नहीं चल सका। कितने आये और गये, लेकिन जीवन को छूकर ही रह गए, उसके तोड़ की बात तो बहुत दूर की है। यह हम सुनते आये हैं कि परलोक इस लोक से अलग है। यह भी सुना जाता है कि वहां मरने के बाद ही जाना संभव है। फिर प्रश्न खड़ा होता है कि मृत्यु के बाद जीवन कैसे संभव हो? परलोक के राज तो इस तरह छिपे ही रहेंगे। मृत्यु को जाने बिना जीवन को जाना नहीं जा सकता।’
मुझे काकी ने बड़ी उलझन में डाल दिया। जीवन की गुत्थी बहुत उलझी हुई है। इसका सुलझना नामुमकिन है। यह सच है कि जिंदगी की दौड़ कभी थमेगी नहीं। यह भी सच है कि हम इसी तरह पैदा होते रहेंगे और मरते रहेंगे। यह सब यूं ही चलता रहेगा क्योंकि जीवन कभी रुकता नहीं।’
काकी ने पास रखे बर्तन से पानी की कुछ बूंदें अपनी सूखी हथेली पर उड़ेलीं। काकी की हथेली नम हो गयी। उसने कई बार ऐसा किया। कुछ समय बाद वह बोली-‘पानी बहता है क्योंकि यह जीवित है। इसे हम ग्रहण करते हैं, इसलिए हम जीवित हैं। इसे जीवन भी कहा जाता है। पानी जीवन देता है। मेरी हथेली पहले सूखी थी, कुछ पानी से नम हो गयी। जीवन से पहले हम शून्य होते हैं। जीवन हमें शून्य से फिर शून्य में भेजता है। यही जीवन का सार है। यहीं हंसी-खुशी, दुख-वेदना और उठना-गिरना सीखते हैं हम। प्रत्येक उत्पत्ति का अपना दायित्व होता है जिसे पूरा करने के बाद अलविदा कहा जाता है। पर जीवन का मकसद छिपा रहता है।’
‘मैंने काफी समय खर्च किया पर बिना निष्कर्ष के ही रही। कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका हल नहीं निकलता, लेकिन सवाल असल में वे ही होते हैं। बातों को घुमाया-फिराया जा सकता है, लेकिन जीवन की गुत्थी को हल नहीं किया जा सकता। अगर हल निकल जाता तो इंसान जीवित ही रहता।’
बूढ़ी काकी को लगा कि मैं ज्यादा गंभीर हो गया हूं। उसने मेरी आंखों के आगे हाथ हिलाया। हल्का सा मुस्कराई और धीरे से कहा-‘कहां खो गये?’ मैंने पलकें झपकीं और सोच में डूब गया। वाकई जीवन खुद के विषय में सोचता बहुत है।
-harminder singh
Friday, June 26, 2009
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