देश में आजकल राजनीति, विशेषकर संसद में पचास फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित किये जाने का मामला गरमाहट में है। कांग्रेस इसके लिए सदन से एक प्रस्ताव शीघ्र ही पारित कराना चाहती है। राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में भी इस पर जोर दिया। इसके लिए विभिन्न राजनैतिक दलों की अलग-अलग प्रतिक्रिया हैं। खासकर समाजवादी पार्टी महिलाओं के लिए संसद में आरक्षण की तो पक्षधर है लेकिन जैसा सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी चाहती है उसे सपा नहीं चाहती।
पचास फीसदी महिला आरक्षण के हिमायती यदि इसमें सफल रहे तो राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा मिलेगा। जिसका कोई भी लाभ महिलाओं को नहीं मिलेगा। आरक्षण लागू होने पर कुरसी पर विराजमान नेता सुरक्षित सीट से अपनी सगी संबंधी महिलाओं को आगे लाकर और भी मजबूत हो जायेंगे।
लोगों में शिक्षा के साथ राजनीति के क्षेत्र में आने का प्रचलन बढ़ा है। आजकल चुनाव लड़ना बहुत ही महंगा सौदा है। ऐसे में किसी निर्धन का चुनाव लड़ना केवल दिवास्वप्न ही नजर आता है। अत: वैध या अवैध कमाई करने वाले पूंजीपति ही चुनाव लड़ सकते हैं। यदि महिला आरक्षण बिल पारित हो गया तो ऐसे पूंजीपति अपनी पत्नि, पुत्री या भाभी या किसी निकटस्थ महिला को सुरक्षित सीट से चुनावी मैदान में उतारेंगे। जो लोग सियासत को अपनी पैतृक विरासत माने बैठे हैं, वे सत्ता पर अपनी पकड़ और भी मजबूत कर लेंगे। आम महिलाओं का फिर भी सत्ता में पहुंचना कोरी बकवास सिद्ध होगा।
राजद प्रमुख लालू यादव को ही देखें तो राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर परोक्ष रुप से उन्होंने सत्ता अपने हाथों में ले ली जबकि अदालत ने उन्हें अयोग्य तथा चारा घोटाले का दोषी मानकर जेल भिजवाया था। सिंहासन पर राबड़ी देवी को बिठाकर उन्होंने जेल से ही बिहार की सरकार चलायी।
पचास फीसदी महिला आरक्षण लागू होने से चंद घाघ नेताओं को ही लाभ पहुंचेगा। देश की महिलाओं को उससे कोई लाभ नहीं होने वाला।
जब प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री बनने से महिलाओं पर अत्याचार कम नहीं हुए तो पचास फीसदी आरक्षण से महिलाओं का क्या उद्धार होगा? दिल्ली सरकार में लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं शीला दीक्षित दिल्ली में महिलाओं के साथ होने वाली बलात्कार और हत्याओं को नहीं रोक पायीं। चौथी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के बनने पर क्या शेष महिलाओं पर अत्याचार समाप्त हो गये? महिलाओं पर पुरुषों से अधिक दुराचार महिलाओं द्वारा ही होता है। वे अत्याचारी पुरुषों का साथ देती हैं। इस तरह के अपराध करने वाले या वाली सीमित संख्या में होते हैं। उसके लिए पूरे पुरुष वर्ग को अपराधी मानना बहुत ही बड़ी भूल है। यदि शत प्रतिशत सांसद भी महिलाओं को बना दिया गया, तब भी इस तरह के अपराध बंद नहीं होंगे। इसका कारण तो कुछ और ही है। महिलाओं के अधिकारों से उसका कोई लेना देना नहीं। यह एक सामाजिक कुरीति है जिसे समाप्त करने के लिए पूरी ईमानदारी और इंसानियत को जाग्रत करना होगा। अधिकांश पुरुष महिलाओं को पुरुषों से अधिक सम्मान देते हैं। क्या इसके लिए संपूर्ण पुरुष समाज को दोषी माना जा सकता है? हमारे समाज में अपनी पत्नि, मां, बहन या बेटियों की सुरक्षा तथा उनके मौलिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले अधिकांश लोग हैं। जो महिलाओं पर अत्याचार करते हैं, उनकी संख्या मुट्ठी भर भी नहीं। आरक्षण के बजाय अपराधी पुरुषों को सख्त से सख्त सजा का कानून सख्ती से लागू किया जाये तो मातृ-शक्ति के दुश्मनों का नाश असंभव नहीं। महिला आरक्षण महिलाओं को कोई लाभ देने के बजाय चंद लोगों को सत्ता अपनी बपौती बनाने का एक हथियार ही सिद्ध होगा।
-G.S. Chahal
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Tuesday, June 9, 2009
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कुछ भी हो जब इतने आरक्षण हो गए तो, एक महिला आरक्षण भी देख लेते हैं।
ReplyDeleteसम्भावना तो ऐसी ही दिख रही है कि परिवारवाद ही चलेगा।
ReplyDeleteघुघूती बासूती