बूढ़ी काकी शायद सोचती बहुत है। मैं उसके गंभीर चेहरे को बारीकी से पढ़ने की कोशिश करता हूं। मैं असमर्थ हूं और उतना अनुभव नहीं कि सिलवटों की गहराई को समझ सकूं। चेहरे पर शंका है, ऐसा भी मुझे लगता है। इसे हम वक्त का तकाजा कहें तो अधिक बेहतर रहेगा।
काकी ने मुझसे कहा,‘तुम किस शंका में हो? शायद मैं कोई रास्ता सुझा सकूं। अक्सर शंकाएं समाधान मांगती हैं। ऐसा करना चाहिये नहीं तो शंका परेशानी को और गहरा कर सकती है। यदि ऐसा हुआ तो उबरने में समय लग सकता है। यह शायद तुम जानते हो कि समय गंवाना आसान नहीं होता, क्योंकि हम एक-एक पल की कीमत चुकाते हैं।’
इतने शब्दों में काकी ने बहुत कुछ कह दिया। मैंने काकी का हाथ छूकर कहा,‘वास्तव में समय बीतता है। ये उंगलियां आराम करना चाहती हैं। चहलकदमी से ये मानो ऊब गयी लगती हैं।’
काकी का स्पर्श पाकर एक अलग एहसास हुआ। हड्डियों पर केवल जर्जर चमड़ी चिपकी थी। हथेली की रेखायें गहराई लिये थीं। नसों ने दामन नहीं छोड़ा था। ऐसा होता भी नहीं क्योंकि वे शरीर के साथ ही समाप्त होती हैं।
काकी कहती है,‘थकी हुई काया है। सबकुछ थका सा लगता है। उम्र का यह पड़ाव सरक कर चलने की आदत डाल देता है। सरकती हुई चीजें अच्छी नहीं लगतीं, लेकिन क्या करें सरकना पड़ता है। बुढ़ापे को ढोना पड़ता है।’
‘वास्तव में मैं शंका में हूं कि मेरा अंत कब आयेगा? कभी-कभी मैं घबरा सी जाती हूं। बेचैनी मानो काटने को दौड़ती है। एक अजीब सा डर है। पता नहीं मौत के बाद भी छुटकारा मिलेगा या नहीं, क्योंकि तब सोचूं क्या पता कि अब क्या? यही उलझन का दौर है, लेकिन भीतर की स्थिति शायद तुम नहीं जान सकते।’
‘इंसान दुखी इसलिये है क्योंकि वह डरा हुआ है। इस दुनिया में हर कोई भयभीत है। जिसे किसी का डर नहीं, यहां तक की भगवान का भी नहीं, वह प्रकृति से घबराता है। होता भी यही है, कुछ अनचाही घटनायें हमें एक पल में झकझोर कर रख देती हैं। सलामती की दुआएं करते रहिए, सुनवाई होगी या नहीं।’ इतना कहकर काकी थोड़े समय के लिये चुप हो गई। उसने मुझसे धीरे से कहा,‘कहीं तुम तो नहीं घबरा रहे?’
मैंने ना में सिर हिलाया। काकी हल्का सा मुस्कराई। फिर उसने कहना शुरु किया,‘तुम मुझे समझ नहीं पाओगे या कई बार मेरी बातें तुम्हें अटपटी लगें, लेकिन यह सच है कि मैं तुम्हें जीवन के वास्तविक पहलुओं से अवगत कराने की कोशिश कर रही हूं। मुझे लगता है कि तुम्हें उतनी ऊब नहीं होगी। मैं कोशिश करुंगी कि तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर अपने अनुभव के साथ दे सकूं।’
जमुहाई लेकर बूढ़ी काकी ने खिड़की की तरफ अपनी कमजोर गर्दन को आराम से घुमाया। उसकी निगाह उतनी नहीं, फिर भी उसने उड़ते पंछियों को ओझल होने तक एकटक निहारा। आसमान गहराई लिये था। काकी का कंबल शरीर को पूरी तरह तो नहीं ढक पा रहा था, लेकिन काकी को इससे किसी प्रकार की परेशानी नहीं थी।
पंछियों को देखकर बूढ़ी काकी शायद यही सोच रही थी कि वह भी इक दिन इसी तरह उन्मुक्त होगी। सब तरह के बंधनों से मुक्त होगी। यह कामना जल्द पूरी होने की आस लगाये थी काकी।
-Harminder Singh
Monday, February 2, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
![]() |
|
| हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
![]() >>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
|
|
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
| ![]() |
|
|
अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
| दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
![]() | ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |


![[ghar+se+school.png]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXxMSBNX5uceENhGZSCkr9K6RgrHLnyt2OdN48UC0OfEkO31AiMxFQ3Cj4Ce5NVMkXy4EVeQ4L9_vl5EnSKVHYVxFbgARWZcaqyPiN3tLN8HPFFow0JfI9YuE0yBZsJPpKFq6vPl9qczLO/s1600/ghar+se+school.png)
![[horam+singh.jpg]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh9jaEMBObfs4x2vNEaMGdvezya9ahQ-ir1sQsXJmDvJRQhnYYhku9TotkXKoxBNPyfE05g2NzvuQ3ge53ZLo8n0edVjkr9kymMw7TgXhNZjnLIdoMTcPDfbMmtKQ12dOgLwzbk-dynUzHl/s1600/horam+singh.jpg)
![[ARUN+DR.jpg]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6QLlVFzl_UZ3_qJSh-_gOGe8D1k_HKnbomppy4Quj9l7tIM84poHpgZHiEVW8WkWTlYKFo0YGZY9Wn7-GP5vZeAZvUhDj58fIC0myIOaGF5jcIX3WCpFH6MIzUl-DAI1QGTG6cB4p0RAe/s1600/ARUN+DR.jpg)
![[old.jpg]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6SiDZJDdaDGKCs08mVeQJcMgoCS_GYpLboAfQoKnmP4GJd56RzmOhD2j1hKSqQQ8GpFTbrZ6rb99WkSmPQOatB_O1ZeSEsXedARhvo_pKkCpD1yGUBDe0NqxjXZIjMZtxhCNnoZQjjBII/s1600/old.jpg)
![[kisna.jpg]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIFS4TmPavnVX-YGEZp-Mgxs9CLpoYi1_65Y8wn2XpbhxLEqVSgK9ClUjNemCCCLttADcOJXOlWKGFqqPnYf2HOuMaZNlu5_i80iXbOnSPShdd7cKdpErPKFWuNTu3MsIH_JnDcZtIGjSC/s1600/kisna.jpg)

![[vradhgram_logo_1.png]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2SMrQ5CiFzhP0WV95VylZWDhq8q002kir5m-nLr3mxZRylb7gLvGEsOApIdueOSJ0NbAqET2DrI_phyphenhyphenLIeOB4wdFeJQdEVprFfskWf2CSDKCtE2RY7m7Ip3IcSSMqcStYcZhmuQdH4gM/s1600/vradhgram_logo_1.png)

![[boodhi+kaki+kehete+hai_vradhgram.jpg]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhaMiIGvGsM4Ffib4Uxba3yZMgxmDF3BsconmXFFcIwtPxL9GY3vN8TxOD3ZLVhVKUNWQamp2ezCUT2V_dfB1CYjOHkWzG5sEi3uOTtCupUNv7gwQMRHdekh0zltLQdaNCw5bKyhEjJvMY0/s1600/boodhi+kaki+kehete+hai_vradhgram.jpg)

![[NIRMAL+SINGH.jpg]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFUf8ZX7JJmU7Es2AfrE1M9DwfAfOF2cF8yqh21vzUpxM9wHMoGTvBEl4Nl1odpHtdIo_nSNbQyOW9vTDw19KumVr-YeCCjTow7PFWDvOy0bnX1JEAP0aPpMCv-5nxv6RXTQtgkV2og1d_/s1600/NIRMAL+SINGH.jpg)
![[jail+diary.jpg]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZZbbSj57vkBz0Nm8fKyppCyrZjadXaOcRAQThdiWfXxO19vzz-HFrjMtnyCwCVpUi6pSsOYOA4KKADao3HptLdNR3pnqRD7xbbDVWvYD-gD-JnxcZddlvDouvMplacu6gyvR-_Q8c_TPy/s1600/jail+diary.jpg)

No comments:
Post a Comment