गरमी गरम करती गरम हवायें,
ऊष्मा की तपती लहरें चल जायें,
हर क्षण जब हो तीक्ष्ण प्रहार,
व्याकुल हों प्यासे, शीतलता अभाव,
तपिश को बहने दो, बहेगी वह,
आकार बड़ा, प्राणी-प्राणी कहेगी वह,
‘मेरा रुप विशाल, जल जाओगे,
दूंगी सबको शुष्कता, क्या पाओगे?
कुछ नहीं, कुछ नहीं होगा मेरा,
हे, मानुष-जीव कहां दंभ तेरा?’
छिपकर रहना सिखा दिया है,
नित्य है संघर्ष बता दिया है।
-हरमिन्दर सिंह
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
bahut sunder abhivyakti
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeletebadhiya hai garmi..........waah..... waah
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