बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Thursday, December 25, 2008

शिव सेना मोरचे पर दिखाये जौहर

मुंबई में आतंकी हमले के बाद जहां राजनैतिक वाद-विवाद चल रहा है वहीं कुछ ऐसे लोग कुछ अधिक ही बोल रहे हैं जो देश में क्षेत्रीयता को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय एकता को तोड़ने का प्रयास करते रहे हैं। शिव सेना प्रमुख और उनके भतीजे राज ठाकरे की करतूतों को पूरा देश अच्छी तरह जानता है। वे लोग कई बार उत्तरी भारत बल्कि बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ गरीबों पर इसलिये हमले करते रहे हैं कि वे काम के लिये मुंबई पहुंचते हैं। राज ठाकरे ने बीते दिनों इसी तरह के कई गरीब लोगों के साथ मारपीट की। जबकि इस हिंसा में कई नवयुवक मारे भी जा चुके हैं। दोनों ठाकरे अपनी-अपनी पार्टी को सेना नाम दिये हैं। बाल ठाकरे ने अपने समाचार पत्र में यह लिखा है कि भारत को पाकिस्तान पर चढ़ाई कर देनी चाहिये। उनसे पूछा जाना चाहिये कि उन्होंने भी शिव सेना बना रखी है। उन्हें अपने सैनिकों को यह काम सौंप देना चाहिये। वे बार-बार इसे बहुत बड़ी देशभक्ति कहते रहते हैं। यदि वे ऐसा नहीं कर सकते तो दूसरों को युद्ध छेड़ने की सीख किस मुंह से दे रहे हैं। बल्कि ठाकरे को उनकी सेना का कमांडर बन कर मोरचे पर पहुंचना चाहिये। यदि वे ऐसा नहीं कर सकते तो क्या वे और उनकी सेना एक ढकोसला ही कहलायेगी। वे अपने कमजोर भाईयों पर तो अकारण ही हमला करवा देते हैं और देश पर हमला करने वालों के पास तक भी फटकने का साहस नहीं रखते। यदि वे वास्तव में ही मुंबई और देश हितैषी हैं तो उस समय ताज होटल क्यों नहीं पहुंचे जब देश के जवान आतंकियों से जूझ रहे थे। ठाकरे को मालूम होना चाहिये वहां मर-मिटने वालों में उत्तर भारत के भी जवान थे। मुंबई पर मालिकाना हक जताने वाले ठाकरे अथवा शिव सैनिक मुंह छुपा कर अपने घरों में क्यों छिपे बैठे थे? ठाकरे जैसे लोगों को सभी अच्छी तरह जान चुके। भले ही वे अपने को कुछ भी समझते हों।

यह बच्चों का खेल नहीं बल्कि आज के युग में दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों का युद्ध पूरी दुनिया के लिये ही बहुत बड़ा खतरा बन सकता है। ऐसे में बहुत ही गंभीरता से विचार करके एक-एक कदम उठाना पड़ता है। यही हमारी सरकार कर भी रही है। ऐसा नहीं कि हम कुछ नहीं कर रहे या कर नहीं सकते। सरकार कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती जिससे कोई खामियाजा भुगतना पड़े। युद्ध से पूर्व उसके परिणामों का आकलन करना एक बहुत बुद्धिमत्ता का काम है। यह केन्द्र सरकार की सूझबूझ ही है कि वह विश्व समुदाय के सम्मुख यह सिद्ध कर चुकी है कि पाकिस्तान ही दुनिया भर में फैल रहे आतंकवाद की जड़ है। ऐसे में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का यह कहना बहुत ही सटीक है कि पाक पूरी दुनिया के लिये खतरा है। ऐसे में विश्व के अधिकांश शक्तिशाली देश भारत के समर्थन में आ गये हैं। जबकि पिछली सभी सरकारों की नीतियों के कारण विश्व की शक्तियां भारत के बजाय पाकिस्तान के समर्थन में खड़ी हो जाती थीं। विश्व के सभी शक्तिशाली देश भी मुंबई हमले से आहत हैं और वे इस नतीजे पर पहुंच गये हैं कि पाक में आतंकवाद पनप रहा है। आतंकी प्रशिक्षित होकर वहां से भारत समेत कई अन्य देशों में पहुंच कर आतंक फैलाने को बेकसूर लोगों को निशाना बना रहे हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने भी जांच में यही पाया है कि यह हमला पाकिस्तान से भेजे आतंकियों द्वारा ही किया गया। एक जीवित पकड़ा आतंकी भी यही कह चुका कि वह पाकिस्तानी है और उसके मारे गये सभी साथी पाक में प्रशिक्षण लेकर यहां तबाही मचाने को आये थे।

बाल ठाकरे हों या राज ठाकरे उन्हें ऐसे अवसर पर कोई ऊल-जलूल बयान नहीं देना चाहिये। अन्यथा समय की मांग को जानकर उन्हें अपनी शिव सेना लेकर पाकिस्तानी सेना से भिड़कर यह सिद्ध करना चाहिये कि उनकी सेना वास्तव में ही एक देश-भक्त और बहादुर सेना है।

-Harminder Singh

1 comment:

  1. बंधु शिवसेना ने क्या गलत कहा है....क्या ऐसा समय नहीं है कि हमें पाकिस्तान पर हमला करना चाहिये...बार बार चांटा खाने के बाद हम फिर से क्या ये सोच रहें हैं कि हां अबकि बार और मारो...यूं करते करते वे कश्मीर से निकल कर पूरे भारत मैं फैल चुके हैं और किस चीज का इंतजार कर रहे हं हम

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कैदी की डायरी......................
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>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

घर से स्कूल
>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



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>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
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‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
[kisna.jpg]
किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
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