युवाओं की स्थिति पतंग के समान होती है, इधर-उधर इतराती पतंग। तेज हवा के झोंके पर डोर छूटने का डर भी रहता है। उन्मुक्त गगन से बातें करने की चाह कई बार धरातल पर भी रहने को विवश कर देती है। संगति का प्रभाव उजड़ा सेवरा न फैला दे, इसलिये अंगारों से बचकर खेलने की सलाह काम आयेगी। अक्सर जल्दबाजी में बहुत कुछ थम जाता है
मैंने बूढ़ी काकी से पूछा कि युवा जीवन में अहम बदलाव हैं क्या? काकी मुस्कराई और बोली,‘जीवन पैर जमाना इसी समय सीखता है। एक बेहतर और टिकाऊ नींव इसी अवस्था बनकर तैयार होती है। हम जानते हैं कि मकान को धंसने से बचाने के लिये नींव कितनी उपयोगी है। कमजोर नींव के मकान अक्सर ढह जाया करते हैं।’
‘युवाओं की स्थिति पतंग के समान होती है, इधर-उधर इतराती पतंग। तेज हवा के झोंके पर डोर छूटने का डर भी रहता है। उन्मुक्त गगन से बातें करने की चाह कई बार धरातल पर भी रहने को विवश कर देती है। तभी कहा जाता है, जो गलत नहीं, कि इतनी तेजी अच्छी नहीं। रगों में रक्त का प्रवाह इस कदर गतिमान होता है कि जोश और जस्बे की कमी नहीं रहती। उम्मीदों के घोड़े दौड़ते हैं पंख लगाकर। नयी सोच, नई ऊर्जा का संसार रच रहा होता है।’
‘मोम की तरह मुलायम भी होता यह समय। हल्की सी गर्मी से मोम पिघलने लगता है तथा उसे किसी आकार में ढाला जा सकता है। यह समय आकार लेने का भी है। अपने आसपास के वातावरण से हम कितने प्रभावित होते हैं? विचारों का हम पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह भी सोचने योग्य विषय है। सांचा ढल जाता है, लेकिन सुन्दर और बेकार होने में देर नहीं लगती। निखार आ गया तो बेहतर, निखरे हुये पर दाग लग गया तो जीवन भर के लिये मजबूत छाप रह जायेगी। शायद ऐसे मौके पर खुद को कोसने का वक्त भी न मिले।’
‘कदमों को कीचड़ से बचाने की जरुरत पड़ेगी। निर्मल पैर ही अच्छे लगते हैं। संगति का प्रभाव उजड़ा सेवरा न फैला दे, इसलिये अंगारों से बचकर खेलने की सलाह काम आयेगी। अक्सर जल्दबाजी में बहुत कुछ थम जाता है। ठिठक कर चलने में कोई बुराई नहीं है। खेल-खेलने वाले कोई ओर होते हैं, भुगतने वाले कोई ओर। इस तरह बनी-बनाई बातें बिगड़ जाती हैं और यहीं से बिखराव की स्थिति उत्पन्न होती है। तब अपनों की याद आती है। अंत में सहारा भी वे ही बनते हैं।’
काकी के विचारों से मैं और अधिक प्रभावित होता जा रहा था। पता नहीं क्यों उसके शब्दों का मुझ पर गहरा असर पड़ रहा था। शब्दों की गहराई समझ में आ रही थी। यही कारण था कि काकी का एक-एक शब्द मुझे कीमती लग रहा था। शायद में बोलों को धीरे-धीरे चुनता जा रहा था।
-Harminder Singh
Wednesday, December 24, 2008
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
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