Friday, December 5, 2008
उनकी खिड़की के कांच अभी चटके नहीं
ये सब रुकना चाहिये क्योंकि एक-एक जिंदगी बहुत कीमती है। आतंकियों का खेल खेलने का तरीका बेगुनाहों को मौत के घाट उतार देता है। पल भर में सब तबाह हो जाता है। सुहाग उजड़ जाते हैं, अपने बिछुड़ जाते हैं और बसे बसाये आशियाने बिखर जाते हैं। यह इंसानियत को शर्मसार करने वाला कृत्य है।
तड़पते इंसानों को देखना बहुत की पीड़ादायक होता है, मगर उनपर जो बीत रही होती है वह इससे भी कई गुना दर्दनाक है। हम अब तक पूरी तरह नहीं समझ पाये कि यहां कोई भी सुरक्षित है। कभी भी किसी की जान जा सकती है क्योंकि हमारे आसपास हर समय मौत मंडरा रही है। सच यह भी है कि हम अपनी मौत से भाग नहीं सकते।
आतंकी कहीं कुछ भी कर सकते हैं। इस साल जो हुआ उससे यह बात और पक्की हो गयी है। उनके इरादे कितने खतरनाक हैं यह भी हम सब जान गये हैं। और यह भी कि उनके लिये केवल हम भेड़-बकरी हैं जिन्हें कब हलाल करना है या झटके से मारना है वे अच्छी तरह जानते हैं। फिर हम ठहरे हुये क्यों है? हमारी सुरक्षा व्यवस्था के जिम्मेदार हम खुद ही हैं क्योंकि जिनके हाथ हमारी सुरक्षा का जिम्मा है शायद उनकी खिड़की के कांच अभी चटके नहीं हैं।
-Harminder Singh
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>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
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