खाकी का समय-दर-समय रंग बदला है, असर भी। आज खाकीवाले बदनाम हैं। तालाब का पानी कहीं मैला है, तो कहीं मटमैला। कुछ मछलियां उसे गंदा करने पर तुली हैं, बाकी उन्हीं की तरह न होते हुये भी, उन्हीं के जैसी लग रही हैं
आप वरदी वाले हैं तो कुछ भी कर सकते हैं। आपका एक रौब है, बस डंडा घुमाने की देरी है। रिक्शेवाला आपसे डरता है क्योंकि थप्पड़ की ताकत वह जानता है और खाकी की भी।
वरदी की कीमत शायद आजकल पुलिस से जुड़े लोग भूल चुके हैं। वरदी की आड़ में घिनौने काम करने में इन्हें शर्म महसूस नहीं होती। कसूर को बेकसूर साबित करने की जैसे यहां होड़ लगी और धन बटोरने की भूख।
कितनी बद्दुआओं को अपने में समेटे है खाकी। कितने दागों, राजों को छिपाये, एक मामूली इंसान को ताकत बख्शती है खाकी।
नाम काफी है बदनामी के कारण। काफी वक्त पहले लोग एक पुलिसवाले को सलाम करते थे, कुछ इज्जत थी। समय बदला, लोग भी, पुलिस भी। अब पुलिसवाला गुजरता है तो सलाम नहीं होता, कई की नजरों में हिकारत जरुर होती है। सलाम करने वाले गिने-चुने होते हैं।
खाकी का समय-दर-समय रंग बदला है, असर भी। आज खाकीवाले बदनाम हैं। तालाब का पानी कहीं मैला है, तो कहीं मटमैला। कुछ मछलियां उसे गंदा करने पर तुली हैं, बाकी उन्हीं की तरह न होते हुये भी, उन्हीं के जैसी लग रही हैं।
एक पहलू यह भीः वरदी वालों की कहानी दो तरह से चलती है। एक मुखौटा नकली लगता है कभी-कभी और कई बार बहुत बदला हुआ सा। जैसा भी वे करते हैं, रोकना नामुमकिन हैं क्योंकि ऐसा करने और सिखाने वाले हम ही तो हैं। उन्हें रिश्वत देता कौन है? उन्हें राजनीतिक दबाव में दबाता कौन है? उनके तबादले करवाता कौन है?
यह हकीकत है कि चौबीसों घंटें खाकी कुछ इंच की गोली के निशाने पर रहती है। कब किस पुलिसवाले का सीना चीरती हुई यह पार हो जाये किसे पता। सोने की फुर्सत हमें तो है, लेकिन एक सिपाही सोता कितना है यह जानने की कोशिश कितनों ने की होगी? एक पुलिस वाले का जबाव था,‘हम जागते हैं ताकि आप तसल्ली से सो सकें।’
एक बात कही जा सकती है कि पुलिस का अस्तित्व न होता तो शायद स्थिति कहीं कुछ और अधिक भयावह और खतरनाक होती। चलो काफी हद तक इस वजह से हम सेक्योर हैं।
हां, कई स्याह पन्ने जरुर हैं जब वरदी दागदार होती है, लेकिन उसको करता तो एक मामूली इंसान ही है, जिसकी वजह वरदी की ताकत होती है।
-हरमिन्दर सिंह
Wednesday, November 12, 2008
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
एक बात कही जा सकती है कि पुलिस का अस्तित्व न होता तो शायद स्थिति कहीं कुछ और अधिक भयावह और खतरनाक होती। चलो काफी हद तक इस वजह से हम सेक्योर हैं।
ReplyDelete" ye bhee shee kha hai, ab hr sikke ke do pehlu to hotyn he hain...accha lga pdh kr"
regards
khaki samay ke sath badal rahi hai aur aisa lagta hai ki aage isme aur badlab ayenge.
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