अंधकार में खो गया प्रकाश,
सूर्य छोड़ चला आकाश,
अंधेरी काली रात है,
न तारे, न चांद साथ है,
जीवन बढ़ रहा अंत दिशा में,
हर्षोल्लास के रंग खो रहे निशा में,
यादें धुंधली पड़ रही हैं,
धड़कनें घड़ी से लड़ रही हैं।
समझ का भंडार भरा-सा लगता है,
दिमाग और मन डरा-सा लगता है,
भूल और गलतियां समझ आ रही हैं,
भूत की स्मृतियां नीदों में छा रही हैं।
अहसास हो रहा मृत्यु की करीबी का,
अंन्तरात्मा की गरीबी का,
डूबने को है नाव, खेने का प्रयास है,
जी तो सकता नहीं, जन्नत की आस है।
जीवन का सार, प्रियजनों का भार हूं मैं,
सच्चाईयों से लड़ता, वृद्ध इंसान हूं मैं।
-शुभांगी
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भगवान मेरे, क्या जमाना आया है
मार्मिक ...!!
ReplyDeletebehad maarmik rachna
ReplyDeleteसमझ का भंडार भरा-सा लगता है,
ReplyDeleteदिमाग और मन डरा-सा लगता है,
भूल और गलतियां समझ आ रही हैं,
भूत की स्मृतियां नीदों में छा रही हैं।
बहुत अच्छा,मन को छू लेने वाला.
जीवन का सार, प्रियजनों का भार हूं मैं,
ReplyDeleteसच्चाईयों से लड़ता, वृद्ध इंसान हूं मैं।
Excellent, great experience
bahut hi achi aur dil ko choo dene wali kavita best wishes to shubhangi from my side
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