एक मां को बेटा याद कर रहा है. इन यादों के तिनकों को उसने एक-एक कर समेटा है. यह उसके ह्रदय की आवाज है. मां होती ही ऐसी है. बच्चा हंसता है, तो मां हंसती है. वह रोता है, तो मां भी रोती है. मां की ममता को पहचाना बहुत कम लोगों ने है. उसके लिये हमेशा छोटे ही हैं, दुलारे भी हैं और प्यारे भी. वह उमरदराज हो गई, उसने बीमारी से भी जान-पहचान की. कब अलविदा कह गई, पता ही नहीं चला. ज्ञानेंद्र जी की माता जी काफी समय से बीमार थीं. कुछ समय पूर्व उनका देहांत हो गया. मां की याद में उन्होंने एक कविता लिखी है. -हरमिन्दर सिंह आप भी पढें- |
मां
निस्वार्थ भाव से जना, एक अंकुरित बीज,
रोपा उसे संचित कर धरा पर, बढ़ने को पेड़ विशाल,
कोई जंगली कुचल न डाले, नन्हें उगते पौधे को,
ताड़-बाड़ बन बैठी वह, नन्हें के चारों ओर,
किया नींद का परित्याग, पेट को भी दिया अल्पहार,
लगी रही पालन-पोषण में, नित दिन-नित रात,
बनाया खून का पानी, छाती से कराया दुग्धपान,
नन्हें के खिलने पर खिली वह, मुरझाने पर मुरझायी,
पौधा बने न किसी पर आश्रित, बने न जीवन में लाचार,
शिक्षा-दीक्षा देकर, बढ़ाया मनोबल उसका अपार,
भटके न जीवन-पथ पर, बाधक न हो दुष्ट चट्टान,
नैतिकता का पाढ़ पढ़ाकर, किया भविष्य को तैयार,
हर घर में जाने को, भगवान बने जब लाचार,
‘मां’ की सृष्टि कर डाली, जानकर विल्पित आधार,
पेड़ बना जब विशाल, फल-फूलों को लदा-भरा,
जड़ में हुयी वह समाहित, देने को खाद-संस्कार,
कर्तव्य-दर-कर्तव्य निभाती वह, बात न हुई अधिकार की,
अनंत तक बनी रही प्रतिभूति, त्याग, तपस्या, सहृदयता, सद्भावना की,
उस कार्यकुशलता, महानता की प्रतिभूति को,
मैं भी करता नतमस्तक होकर, कोटि-कोटि प्रणाम।
-GYAN PRAKASH SINGH NEGI 'gyanender'
TEVA API (INDIA) Ltd.
सबसे पहले तो मैं आपके द्वारा शुरू किये गए इस ब्लोग के लिए मुबारकबाद देना चाहूँगा. ये एक बेहद अच्छा काम आपने किया है. यहाँ पहले सभी प्रकार के ब्लोग हैं. महिलाओं का, बेटियों का. अब बुजुर्गों का भी हो गया. इसके धन्यवाद भी स्वीकारें.
ReplyDeleteअब रचना.. बेहद उम्दा रचना है. मन के भावों को माँ से मिलाया गया है.
नदीम जी,
ReplyDeleteबुजुर्गों की एक अलग कहानी होती है। उस कहानी को लिखने का साहस यहां किया जा रहा है। उनके पलों को समेटने की कोशिशें हम कर रहे हैं। ये कोशिशें उन लोगों को कुछ राहत पहुंचा जाये, यही हम चाहेंगे। जमाने के दस्तूर को सबने देखा है, लेकिन असल जाना जाता है बुढ़ापे में। मैं स्वयं रोज अनेकों उम्रदराज लोगों से मिलता रहता हूं। उनके विचारों को इकट्ठा करता रहता हूं। उनकी बातें हर किसी को पसंद नहीं आतीं। वक्त के थपेड़ों ने बहुतों को पूरी तरह तोड़ कर रख दिया है। शायद वृद्धग्राम की यह कोशिश कुछ उन्हें थोड़ी सी सीख दे जाये जो अपने बुजुर्गों के साथ दुव्र्यवहार करते हैं या करने जा रहे हैं।
धन्यवाद.
mere pass taarif ke liye shabd nahi hai......bas itna hi kah sakti hoon bahut hi badiya..
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