बुढ़ापे में जवान होने का साहस कौन कर सकता है, लेकिन मुंशी जी करते थे। वे अपने आप को अंतिम दिनों तक नौजवान समझते रहे। उनका शरीर ढल गया था, हाथों में जान बची नहीं थी, वे लाठी से सरकते थे, लेकिन गन्ने को चूसते हुये जवान ही लगते थे।
कमर का मुड़ाव इस ओर इशारा करता था कि अब दिन चलने के आ गये। एक ऐसी दुनिया में चलने के जहां से पता है, सब जानते हैं, कोई वापस आता नहीं। आती है उसकी याद और वे सब जो उसने यहां रहकर किया और कहा।
मुंशी निर्मल सिंह आर्यसमाजी थे। आर्यसमाज से बड़ा धर्म उनके सामने कोई था नहीं। बाद में सिख बनेवे। लाहौर में जाकर भाषण देते थे। सभाओं में उनके होने से रौनक रहती थी और अनुपस्थिति में वीरानी। वे कहते थे,‘‘आजकल हम बदल रहे हैं और बदल रहे हैं हमारे विचार। तो हम क्यों न इस बदलाव को अपनायें। तैयार हो जायें एक नये कल के सुनहरे उजाले के लिये जिसमें बहुत सी नयी मालूमातें करनी होंगी, क्या होता है और क्यों होता है।’’ शायद उन दिनों में वे अपने को एक ऐसा व्यक्ति मान कर चल रहे थे जो अपना तो शायद उतना नहीं, लेकिन दूसरों को काफी कुछ भला कर रहा है।
अखबार वाले उनके आगे पीछे रहते थे कि मुंशी जी कुछ लिख कर उन्हें भी देंगे। यह तब की बात है जब भारत आजादी के लिये संघर्ष कर रहा था। तब उर्दू के अखबार काफी संख्या में निकलते थे। वे उर्दू में लिखते थे। उनके भाषणों में बहुत कुछ धरती से जुड़ा रस छिपा होता है क्योंकि वे उस घर से आते थे जहां खेत-खलिहान लोगों के प्रिय थे और वे खेती प्रेम से करते थे।
एक बात वे कई बार कहते थे,‘‘अब तो लोग बिना टोपी और चादर के आ रहे हैं। ठंड में भी और गर्मी में भी। शायद वे भूल गये कि ये दोनों हमें उन दोनों से बचाते रहे हैं।’’
शब्दों की माला पहनकर वे आते थे और शब्दों का रस श्रोताओं के कानों में घोल जाते थे। साहित्य के वे पुजारी थे। आज भी उनके गांव में एक अलमारी का अवशेष मिल जायेगा जिसमें भिन्न भाषाओं की पुस्तकें जर्जर हालत में मिलेंगी। उनके परिवार के लोगों ने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। उन्हें उर्दू, हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी, रुसी आदि भाषाओं का ज्ञान था। उनके पास रुस से कई पत्र-पत्रिकायें आते थे। उनकी एक रुसी पत्रिका मेरे पास मौजूद है।
उन्होंने अपने गांव में सबसे पहले पानी की प्याऊ बनवायी। पानी पिलाने के लिये वाकायदा एक तनख्वाह पर नौकर रखा हुआ था।
उनकी कई बातें आपको समय समय पर बताता रहूंगा।
हरमिन्दर सिंह द्वारा
Friday, May 16, 2008
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
भाई, वृद्धों के लिए ब्लॉग शुरू करके आपने बहुत अच्छा कदम उठाया है. बधाई! इसकी कमी महसूस की जा रही थी.
ReplyDeleteदादा निर्मलजी के बारे में जान कर बेहद अच्छा लगा. उनके बारे में और जानने की जिज्ञासा है.
आप जैसे लोग साथ होंगे तो यह पवित्र कार्य और आगे बढ़ेगा.
ReplyDeleteविजयशंकर चतुर्वेदी जी,
आपका बहुत धन्यवाद.
भाई, मेरी कोई औकात नहीं है. बस, एक मशविरा है कि इस ब्लॉग से कई लोगों को जोड़ दें. यानी लोग अपने-अपने बुजुर्गों के ताल्लुक से अपनी-अपनी बातें शेयर करेंगे. उन्हें इनवाईट करें- 'सेटिंग में जाकर 'परमीशन' में जायें. बस ख़याल ये रखें कि किसे इनवाईट करना चाहते हैं. क्योंकि ब्लॉग की दुनिया में चंद लोग ज्यादा अच्छे नहीं हैं.
ReplyDeleteऔर एक ख़ास बात, वर्ड वेरीफिकेशन हटा दीजिये, हाँ, अगर जरूरी समझें तो 'कमेन्ट मोडरेशन' रख लीजिएगा.
भाई बहुत बहुत बधाई इस नई सोच और प्रयत्न के लिए ।
ReplyDeleteबहुत खूब...अच्छा लगा यहां आकर। निर्मलजी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा।
Ajit ji aap blog par aaye. Apka dhanyavad.
ReplyDeleteउन के अनुभवों से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा हमें। इस ब्लॉग में रचनाएं आमंत्रित भी की जा सकती हैं।
ReplyDeletebahut achaa blogg start kiyaa apneee,meri tarf se best wishes hai...ekk nivedan hai jo subscription mails ke dara hota hai vio bhi start kar dijeyee...kyoo ki jab mail inbox me atii hai tabi dyaan ataa haii.........
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