वृद्ध स्वयं भी हैं, औरों के लिये तन-मन-धन से संलग्न हैं वे। ऐसे लोग मिलते कहां हैं जो दूसरों के लिये जीते हों। लेकिन पेशे से चिकित्सक डा. रमाशंकर आज से नहीं बल्कि पिछले कई वर्षों से चिकित्सा समाज सेवा की तरह कर रहे हैं।
गेरुआ वस्त्रधारी संत आपने बहुत देखे होंगे लेकिन साधारण वेशभूषा में एक ऐसे संत भी हैं जो वास्तविक समाजसेवी तथा संत हैं। डा. रमाशंकर ‘अरुण’ के नाम से उन्हें सभी जानते हैं। बस्ती में उनका क्लीनिक है। वे 80 वर्ष के हो चुके लेकिन उनके स्वास्थ शरीर से वे साठ से कम ही लगते हैं। उनकी पुत्री उनकी एक मात्र संतान है, जो एक सुयोग्य चिकित्सा विशेषज्ञ हैं।
कई वृद्धों को वे आज भी अपने यहां आश्रय दिये हुये हैं। शांत स्वभाव के हैं, और उनके पास बैठने से शांति का अनुभव किया जा सकता है। वे अब एक वृद्धाश्रम बनाने की योजना बना रहे हैं। इसके लिये कई समाजसेवी उनका साथ देने का तैयार हैं।
डा. अरुण गजरौला ग्राम सभा के प्रधान भी रह चुके हैं। लोगों का कहना है कि उन्होंने पूरी ईमानदारी से काम किया। श्रमगढ़ी खादी ग्रामोद्योग के वे कई वर्षों तक कोषाध्यक्ष भी रहे तथा स्वेच्छा से यह पद भी छोड़ दिया। इस समय आप पूरे दिन बीमार लोगों को स्वास्थ्य लाभ कराने में संलग्न रहते हैं। प्रति पूर्णिमा तथा अमावस्या पर ब्रजघाट जाकर लोगों को निशुल्क दवाईयां बांटते हैं। दुकान पर भी प्रतिदिन कई निर्धन लोगों को मुफ्त दवाई दे देते हैं।
अत्यंत मृदुभाषी लेकिन न्यायपूर्ण बात करने वाले अरुण जी बिल्कुल निर्भीक और धार्मिक पुरुष हैं। जनहित के किसी भी काम में वे पीछे नहीं रहते।
जल्द ‘वृद्धग्राम’ पर हम मिलेंगे एक ऐसे व्यक्तित्व से जिन्होंने अपना जीवन दूसरों को उच्च आर्दश देने और उन्हें शिक्षा और अनुशासन का पाठ पढ़ाने में लगा दिया, लेकिन आज उन्हें दर्द है अपने बुढ़ापे का।
धन्यवाद उन सभी का जिन्होंने अपना मूल्यवान समय निकाला और ‘वृद्धग्राम’ पर आये।
हरमिन्दर सिंह द्वारा
Sunday, May 11, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
|
हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
|
|
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
|
|
|
अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
निश्चित ही वृद्धों की सेवा में परमानंद है.
ReplyDeleteवृद्धों की सेवा भी किस्मत वालो को नसीव होती हे मुर्ख लोग तो इसे भी खो देते हे
ReplyDeleteधन्यवाद