|
‘‘छोटी-छोटी खुशियां हमारे लिए कितने मायने रखती हैं। जरा सी खुशी पाकर हम फूले नहीं समाते। असल में इसका असर गहरा होता है। सीधा हृदय पर जाकर लगता है। लोग दिल से खुश होते हैं, तो कितना अच्छा लगता है। आंखें भर आती हैं। पलकें भीग जाती हैं। सच्चे अर्थों में इंसान खुश होता है।’’बूढ़ी काकी बोली।
काकी किसी विचार में डूब गयी। उसका चेहरा गंभीर हो चला था। मैंने उसकी हथेली को छूकर देखा। रेखायें गहरी थीं। दरारों के बीच की दूरी सिमटी कहां थी? बल्कि गहराई तिड़की हुई थी। शुष्क हथेली खुरदरेपन का अहसास कराती थी। चमड़ी में खिचाव की बात कब की खंदकों में दफन हो चुकी। इस समय घास के तिनके भी हाथ आ जाएं तो गनीमत है। खैर, कोशिश जारी है।
काकी फिर बोली,‘‘छोटी-छोटी चीजों को इक्ट~ठा कर उनसे कोई बड़ी चीज बनाई जाती है। हम यही करते हैं। खुशियों के कारण प्राय: मामूली होते हैं। किसी के लिए कोई बात खुशी लाती है, तो कोई किसी बात पर खुशी के आंसू बहाता है।’’
‘‘अक्सर इंसान इंसान के लिए खुशी बांटता है। कुछ उसे हासिल कर लेते हैं, कुछ वंचित रह जाते हैं। कई ऐसे भी होते हैं जिनके हिस्से की खुशी छिन चुकी होती है। वे वीरान संसार का हिस्सा खुद को समझने से परहेज नहीं करते। शायद यह उनकी आदतों में शुमार हो जाता है।’’
‘‘कुछ शायद दूसरों से इस कदर जुड़ाव महसूस करने लगते हैं कि उन्हें अपने हिस्से की खुशी देने की कोशिश करते हैं। ये वे होते हैं जो दूसरों की खुशी से अपनी खुशी हासिल करना चाहते हैं। कुछ खास लोगों को वे पता नहीं क्यों दुखी नहीं देखना चाहते। यह स्वत: ही होता है। दूसरों को यह अजीब जरुर लगता है, लेकिन उतना होता नहीं। वे सोचते हैं कि उन्हें संसार का सबसे बड़ा सुख मिल गया, पल भर में, सिर्फ हंसकर ही।’’
‘‘कुछ ऐसे भी होते हैं जो खुशी खरीदते हैं। जबकि हम यह जानते हैं कि न जिंदगी खरीदी जा सकती है, न उससे मिलने वाली खुशी। मैं कहती हूं इंसान हर पल को जीभर कर जीना सीखे। चूम ले रोशनी को ताकि सूरज निकलने का इंतजार न करना पड़े। दूसरों से लगाव करना सीखे वह। उनके शब्दों को समझे, मीठा बोले, तो कितना कुछ आसान हो जाए।’’
‘‘खुद से कहे कि वह हर पल को जीना चाहता है। इतना शानदार कि उसका चित्त हंसता रहे बिना अवरोध के। जिंदगी का क्या पता कब थम जाये। वह यह सोचे कि वह कितना खास है खुद के लिए, और उसकी एक मुस्कराहट उसके और दूसरों के जीवन में क्या कुछ बदल सकती है।’’
काकी ने जितना जीवन जिया खुद को खास मानकर जिया। वह जिंदगी के उस मोड़ पर खड़ी है जहां फर्श की दरारें दूरी बनाती जा रही हैं, इंतजार सिर्फ इंसान के धंसने का है।
-harminder singh
वाकई, जिन्दगी का क्या पता कि कब थम जाये..
ReplyDeleteजितना जिए खुद को ख़ास मान कर जिए ...अब इससे ज्यादा क्या कोई जीए ...
ReplyDeleteमौत तो जब आनी है आनी ही है ...तब तक हर पल ख़ुशी से जीए
आज 30 मार्च 2010 के दैनिक जनसत्ता में आपकी यह पोस्ट संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में फर्श की दरारें शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई।
ReplyDelete