बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Tuesday, January 26, 2010

करीब हैं, पर दूर हैं

हमें क्या हो जाता है? हम नहीं जानते। हमें मालूम नहीं होता कि हम करने क्या जा रहे हैं। आज उदासी को फिर मैंने करीब से छुआ। आज फिर से कुछ टूटा।

  मुझे लगता है, जैसे पहले जैसा कुछ रहा नहीं। शायद धीरे-धीरे बिखरता जा रहा है कुछ।

  इंसानों के चेहरे कभी तो हमें बहुत अच्छे लगते हैं। और कभी-कभी हम उनसे दूर जाने की कोशिश करते हैं। शायद इसलिए कि दूर रहकर कुछ सुकून मिल जाए, लेकिन मैं हर बार वहीं लौट आता हूं।

  मेरी समझ में नहीं आता कि हम इतनी जल्दी गुस्सा क्यों कर जाते हैं? मेरी समझ में यह भी नहीं आता कि हम इतनी जल्द रो क्यों जाते हैं? आंसू बहाते हैं, गुस्सा करते हैं, लेकिन फिर भी करीब रहते हैं।

  जो लोग कभी हमारे लिए ‘स्पेशल’ रहे हों, हम आज ऐसे हो गये कि उनसे बात करने का मन नहीं करता। ऐसा क्या हो गया कि हम उनसे दूरी बनाते जा रहे हैं। शायद इसे समझने में वक्त लगे।

  मैं नहीं समझता कि इससे कुछ लाभ हो। तो चुप रहने में ही भलाई है।

  अगर हम उन्हें खुश नहीं रख सकते तो दुख क्यों दें।
  विचारों का मेल कितना जरुरी है, यह मैं जान गया। इसमें उम्र का कोई मतलब नहीं रह जाता। कभी हम बात इस तरह करते हैं जैसे वर्षों से एक-दूसरे को जानते हों। और कभी ऐसे हो जाते हैं कि सदियां रुखेपन में बीत गयीं।

  मैंने खुद को कह दिया कि जब हम एक-दूसरे को समझ नहीं पा रहे तो दूर जाने में ही फायदा है। लेकिन मन ही फिर रुकने को कह देता है। मैं विवश हूं, रुक जाता हूं।

  दो समानांतर रेखाएं उतनी दूरी पर ही रहती हैं। वे कभी मिल नहीं पातीं। हां, एक-दूसरे की करीबी का एहसास जरुर उन्हें रहता है, लेकिन कह नहीं पातीं।

-harminder singh

7 comments:

  1. विजय विश्व तिरंगा प्यारा ,झंडा ऊँचा रहे हमारा
    गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाए*

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  2. aapka bhaut bhaut dhanyavaad bhaskar ji.

    republic day ki shubhkamnayei aapko aur sabhi ko.

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  3. सामानांतर रेखाएं मिलती नहीं कभी मगर साथ साथ हमेशा चलती हैं ...किसी के साथ चलने का एहसास ही कम नहीं ...वर्ना तो लोग साथ चलते भी साथ नहीं होते ....!!

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  4. जीवन का एहसास ही कुछ ऐसा है वाणी जी की लोग चलते हैं, लगते साथ हैं, लेकिन होते नहीं क्योंकि पास रहकर भी दूरी बन जाती है। शायद ऐसा अचानक हो जाता है।

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  5. कई बार देखा है जो एक दूसरे पर जान देते थे वो जान लेने पर आमादा हो गए हैं...रिश्तों कि शक्ल बदलते वक्त नहीं लगता है...और सामानांतर रेखाओं की ज़िन्दगी बहुत बोझिल होती है...निरुद्देश्य...ये वो रिश्ते हैं जिनकी कोई मंज़िल नहीं होती ये बस सालते ही रहते हैं...
    मैं पहली बार आई हूँ आपके ब्लॉग पर ...अच्छा लिखते हैं आप..

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  6. man ki uljhan ka sateek varnan kiya hai apne.... apki khi her line apni se lg rhi hai......

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...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

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कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



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>>मेरी बहन नेत्रा

>>मैडम मौली
>>गर्मी की छुट्टियां

>>खराब समय

>>दुलारी मौसी

>>लंगूर वाला

>>गीता पड़ी बीमार
>>फंदे में बंदर

जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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वृद्धग्राम पर पहली पोस्ट में मा. होराम सिंह का जिक्र
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वृद्धों की सेवा में परमानंद -
डा. रमाशंकर
‘अरुण’


बुढ़ापे का दर्द

दुख भी है बुढ़ापे का

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख

बुढ़ापे का सहारा

गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
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किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम
hindustan vradhgram ब्लॉग वार्ता :
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
NDTV

इन काँपते हाथों को बस थाम लो!
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