Thursday, October 15, 2009
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
बेताब है रोशनी,
दरार से झांकने को,
सही सलामत हूं मैं,
अकेला भी,
साथ नहीं कोई यहां,
सोच कहती है,
जलते दीये देखूं,
मोम का पिघलना देखूं।
कदमों को धीरे बढ़ा,
चलना चाहता हूं,
अंधेरे में रहा जीवन,
उजाला देखना चाहता हूं,
बीत गयी होली कब की,
रंगों में नहीं नहाया,
इस बार,
सिर्फ एक बार,
रोशनी में भीगना चाहता हूं,
लड़खड़ाते कदमों से ही सही,
सच कहूं,
मैं दीवाली देखना चाहता हूं।
-harminder singh
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
happy diwali bhatia ji.
ReplyDeletesabhi ke jivan mein khushiyan laye ye roshni ka parv.
dhanyavad,
harminder singh
vradhgram