मैंने काकी के सफेद बालों की ओर देखा। काकी ने कहा कि काफी समय से ये ऐसे ही हैं। उनकी सफेदी उम्र बखान कर रहा थी। काकी का चेहरा भी उनके साथ अनोखा नहीं लग रहा था। असल में बुढ़ापा भी सुन्दर लगता है, फर्क सिर्फ नजरिये का होता है। इसपर काकी कहती है,‘यह हम सुनते आये हैं कि सुन्दरता देखने वालों की आंखों में होती है। .......और जिसके आंखें न हों, वह.....।’
इतना कहकर काकी रुक गई। आगे बोली,‘वह स्पर्श कर अहसास करते हैं। वास्तव में स्पर्श एक अहसास ही है, अनुभव है। आंखों वाले भी स्पर्श का मतलब जानते हैं। प्रकृति सुन्दर है, लोग भी और भगवान की बनाई प्रत्येक वस्तु की छटा अपनी है। नये और पुराने का संगम है प्रकृति। इस ओर कुछ छिपा है तो उस पार का नजारा भी कम विस्मयकारी नहीं। यही प्रकृति का अद्भुत खेल है। युगों से यही होता आया है। हर बार लोगों ने संसार को अपने चश्मे से देखा है तो सुन्दरता का कोई रुप किसे भाया तो कोई रुप किसे। अपनी-अपनी समझ ने जिसे जैसा दिखाया वैसा ही उसे लगा।’
‘बुढ़ापा सुन्दर भी होता है। ऐसा मेरी नजर कहती है। मुझे मालूम है कि सबकी सोच एक-सी नहीं होती। इन जर्जर हाथों में कोमलता अब कहां? फिर भी सुन्दर हैं यह हाथ। चेहरे पर रौनक की बात छोड़ो, झुर्रियां चहलकदमी क्या, स्थायी तौर पर निवास करने लगी हैं। इतना सब बदल गया है, फिर भी खुद को किसी परी से कम नहीं समझती।’
इतना कहकर काकी का चेहरा मुस्कराहट से भर जाता है। वह अपने बिना दांतों वाले मुंह के दर्शन करा देती है। काकी को हंसता हुआ देखकर मुझे पता चला कि बुढ़ापा खुश है, क्योंकि अभी इंसान जीवित है। हंसती हुई हर चीज अच्छी लगती है, चाहें उसमें कितना पुरानापन क्यों न आ गया हो। उमंग को जीवित रखती है हंसी और एक पल की हंसी कई गुना सुकून पहंचाती है। हम कितनी आसानी से कह देते हैं कि बूढ़ों को हंसना नहीं आता। यह उम्र बीतने का दौर होता है, अंतिम उड़ान और विदाई का वक्त होता है। इसमें मामूली मुस्कराहट भी मायने रखती है। हंसी के साथ जिये हैं, तो अंतिम समय ठहाका लगाने में क्या बुराई है? काकी जिंदादिली की मिसाल थी। पेड़ जर्जर होने पर वीरान लगता है क्योंकि उसकी हरियाली छिन चुकी होती है। इंसान के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है।
-harminder singh
Monday, January 19, 2009
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| हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
![]() >>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
| दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
![]() | ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |


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हरमिंदर ,
ReplyDeleteतुमने बहुत अच्छी किया है ये ब्लॉग bana कर ....सच तो ये है की बुडापा ही sunder है .....बुजुर्गों के लिए आप के बाव अच्छे लगे
बहुत सुन्दर और प्रेरणाप्रद है धन्यवाद्
ReplyDeleteचलो हम लोगों के बे वक़्त फिर रहे हैं. हम आपके आभारी हैं हमें यह अहसास दिलाने का. सुंदर पोस्ट. पुनः आभार.
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