ये उम्मीद जो है न, बहुत अजीब चीज है। इसने मुझे जीने का हौंसला दिया है। ......मैं थका था जरुर कभी, लेकिन उम्मीद लगाता हूं कि एक दिन सब अच्छा होगा और.........और आज तक उम्मीद ही तो लगाये हैं मेरे जैसे इंसान। शायद उनके जीने की वजह ये ही है।
मुझे मालूम है कि एक पल जीवन का कितना कठिन होता है इस उम्र में। मामूली जख्म भी काफी दर्द दे जाता है। पता नहीं क्यों दर्द को सहने की आदत सी जो पड़ गयी है। शायद यही बुढ़ापा होता है- सहना और सहते जाना।
मैंने कभी नहीं चाहा कि किसी को कष्ट पहुंचे। सबसे प्रेम करता रहा जीवन भर और........और आज जब मैं अकेला हूं, कोई मेरे पास नहीं फटकता। ऐसा क्यों होता है? क्यों अपने वक्त के साथ पराये हो जाते हैं? क्यों कोई जर्जर काया वालों को नहीं पूछता? क्यों हर कोई बचने की कोशिश करता है? क्यों?.............इस क्यों का सवाल मुझे आजतक नहीं मिल सका।
एक जिंदगी और हजार बातें। ठहर कर चलने की आदत। एक मु्ट्ठी और रेत के हजार कण। कैसा महसूस होता है जब रेत धीरे-धीरे हाथ से फिसल जाती है। रेशे-रेशे की चमक आज फीकी मालूम पड़ती है। जायके की मत पूछिये, वह तो रहा ही नहीं।
.........लेकिन एक चीज अभी बाकी है, जो बाकी ही रहेगी। ........उम्मीद अभी बाकी है। मैं जी रहा हूं इसी उम्मीद के साथ कि एक दिन सब ठीक होगा।.........शायद बुढ़ापा भी एक दिन जी खोल कर हंसेगा........उस दिन न दिवाली होगी, न ईद, न होली..........बस जश्न होगा, अनगिनत रंगों की चमक का, लेकिन उसके लिए खुदा के घर का इंतजार है।
-harminder singh
bahut khoob...bada kaavyatmak gady hai...
ReplyDeleteएक बूढ़े की वेदना...हृदयस्पर्शी
ReplyDeleteबहुत खूब !!
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी ...!!
ReplyDelete