वरुण के दादा अपने पोते को बहुत चाहते हैं। वे उसके पास कुछ पल बिताने की इच्छा रखते हैं। पोता दादा की भावनाओं की कद्र नहीं करता क्योंकि वह बुढ़ापे के बहते प्रेम को आंक नहीं सकता।
वरुण के माता-पिता नौकरी करते हैं। उनके पास समय नहीं। दोनों सुबह जाकर देर रात घर लौटते हैं। तब तक वरुण सो चुका होता है। उसकी उम्र यही कोई 14-15 साल है। वह सुबह स्कूल जाता है। लौटने के बाद ट्यूशन। फिर शाम को दोस्तों संग थोड़ा समय बिताता है। उसके बाद पढ़ाई-लिखाई कर जल्दी सो जाता है। तभी पढ़ाई में वह औसत है।
बेचारे दादा जी घर में इधर से उधर टहलते रहते हैं।
रविवार के दिन पूरा परिवार साथ होता है। लेकिन उस दिन वरुण को मम्मी-पापा कार से कहीं घुमाने ले जाते हैं। मां कहती है वरुण से,‘‘बेटा कहां जाना चाहोगे।’’ वरुण के दादाजी से कोई कुछ नहीं कहता। वे रविवार को भी अकेले रह जाते हैं।
शायद वे एक ऊबी हुई वस्तु की तरह हो चुके हैं जिसे कोई पसंद नहीं करता। वरुण मौल में घूमता है। ढेर सारी शापिंग होती है। खुशियों के सामान समेटे जाते हैं। घर में दादा जी मायूसी में लिपटे बाट जोह रहे होते हैं।
यह घर हर सुख-सुविधा से भरा है। दा्दा जी बच्चों से खुश हैं। बच्चे उन्हें दुखी नहीं करते। जिस चीज की जरुरत पड़ती है, उपलब्ध हो जाती है। अभी कुछ दिन पहले उनकी आंखें चैक करवाई गईं। मामूली खांसी होने पर डाक्टर के पास ले जाते हैं।
‘‘कमी किस बात की है, सब कुछ तो है आपके पास।’’ मैंने उनसे पूछा।
उनका उत्तर था,‘‘बेटा, बच्चे इतने करीब रहकर भी, कितने दूर हैं।’’ यह कहकर उनके आंसु निकल आये।
मैंने उनका हाथ थामा और उन्हें भावनात्मक तसल्ली देने की कोशिश की। उन्होंने मेरी तरफ देखा। हल्की मुस्कान थी चेहरे के साथ आंखों में, क्योंकि कोई था उनके साथ, जो अपना न सही, पर पराया होते हुए भी अपना लग रहा था।
-harminder singh
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
aah marmik...
ReplyDeleteआज का सच....मार्मिक ...
ReplyDeletelog old is gold nahi samjte wo
ReplyDeleteinhe olg in vardhaashram samjh bahtte he
ye unki nadani he or kuch nahi
bahut khub likha gaya hai.
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