वीरान सवेरे हैं,
छटपटाता हूं मैं,
तिड़के अंधेरे हैं,
सुबह की लाली नहीं,
शाम घनेरी है,
बूंदों की भाप उड़ी,
आवाज सिर्फ मेरी है,
ढूंढ रहा किसे?
रास्ता तपा हुआ,
सरक रहा जीवन,
मंद-मंद नपा हुआ,
सब्र आदत बना,
साथ छूट रहा,
बुढ़ापा सामने खड़ा,
मुझसे पूछ रहा।
-harminder singh
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