जिंदगी में खुश रहने के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन बातें करने से एक अजीब सी खुशी होती है। बुढ़ापा इस बात का गवाह है कि शरीर थक गया है, लेकिन बोल अभी थके नहीं हैं। वृद्ध बोलते हैं, हम उनकी बातों पर अधिक ध्यान नहीं देते। कारण ‘जनरेशन गेप’ का भी है।
ढेर सारी बातें कर मन तरोताजा हो जाता है। अभी कुछ माह पहले मेरे नाना हमारे यहां आये थे। शाम के समय वे अक्सर मेरे पास बैठ जाते और खूब बातें करते। हम दोनों घंटों बैठे रहते। उनकी बातें पुराने जमाने की यादों को समेटे होतीं। मेरे जिज्ञासा बढ़ती जाती। मैं उनसे सवाल करता। वे जबाव देते। उनकी उम्र के बूढ़े चारपाई पर हैं लेकिन वे कमर सीधी कर बैठने वालों में से हैं।
सुबह पांच बजे घूमने निकल पड़ते। रास्ते में कई लोग मिलते। उनसे काफी देर तक मुलाकात होती। बच्चे मिल जाते तो उनका हाल-चाल पूछते। कुछ ही दिन रहे। वे मिलसनसार हैं और खुशमिजाज भी। किताबों से लगाव रखते हैं। धीमा बोलते हैं लेकिन कोई एक बार उनसे मिल ले, वह उनका मुरीद हो जाये। यह उनके बोलों की ताकत हैं। बातें करना उन्हें पसंद है और खूब सारी बातें। उनसे मैंने काफी कुछ सीखा है।
मैंने एक बात महसूस की कि वे दिनभर चुपचाप रहते क्योंकि उस समय सब अपने-अपने काम में तल्लीन रहते। शाम के समय हम सब एक साथ बैठ जाते। धीरे-धीरे सब उठ जाते लेकिन में जमा रहता। उनकी बातें काम की होतीं, हां वाक्य छोटे होते। मुझे लगा कि वे इतना कहकर भी बहुत कुछ कहते नहीं। उनकी उम्र ढल रही है। वे उसे जीत तो नहीं सकते, हां तसल्ली जरुर दे सकते हैं। बुढ़ापा उम्र की हद को बताता है। कहता है-‘‘सफर खत्म करने का वक्ता आ गया।’’
-Harminder singh
Friday, July 18, 2008
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
वृद्धों की बातें सुनने का धैर्य जिनमें होता है वे बहुत रोचक बातें जान सकते हैं व अपने को गुजरे जमाने से जुड़ा महसूस कर सकते हैं। लेख अच्छा लगा।
ReplyDeleteघुघूती बासूती