एक वृद्ध याद कर रहा है अपनी गुजरी पत्नि को। प्रस्तुत है बुढ़ापे की आंखों से झांकती एक तस्वीर। इसके सिरे मटमैले हैं, कुछ धुंधलापन भी है, लेकिन तस्वीर फिर भी साफ है।
वहां भी अकेली है वह
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मैं अकेला रह गया,
बिल्कुल अकेला कह लीजिए,
निराश हूं, सुखी काहे का,
उदास कह लीजिए,
वह चली गयी, अपनी राह,
ढूंढ रहा मैं भी,
भटक न जाऊं कहीं,
कोहरे में कभी,
चुपड़ी रोटी नमक की,
खिचड़ी दाल की,
पकाती थी वह,
चटनी पोदीने की बनाती थी वह,
चूल्हे की गीली लकडि़यों में,
आग जलाती थी वह,
धुंए में उसकी खांसी,
आंखों में धुंआ भरता,
थकी सी, कमजोर सी,
फिर भी,
रोटी बनाती थी वह,
उदास होता मैं,
वह भी होती,
एक मुस्कराहट से हंसा जाती वह,
ठंड में इसमें सिमट जाती वह,
बातें खूब करती, अब चुप थी वह,
समय शायद था पता,
चली गयी,
अकेली थी वह,
वहां भी अकेली है वह।
-harminder singh
Saturday, July 12, 2008
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
bhut bhavnatmak kavita.
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