जिस दिन न अधिक खुशी हो, न अधिक दुख वह मेरे लिए मिलाजुला है। वैसे आज कई मायने में मैं खुश था क्योंकि मुझे लगा कि सादाब की अम्मी और बहन उससे मिलने आयेंगे। वह लगभग पूरे दिन चुप बैठा रहा। उसकी आदत को देखकर मैं कभी-कभी नहीं कई बार हैरत में पड़ जाता हूं। वह मुझे अनोखा लगता है, पर वह उतना अजीब भी तो नहीं।
मुस्कराने का मायना उसने मुझे बताया। वह शायद मुझे प्रभावित करता है। मैं उसके हौंसले की कद्र करता हूं। वह इतना थक कर भी जीवन से हारा नहीं। मैं यदि उसकी जगह होता तो कब का टुकड़े-टुकड़े हो गया होता। उसने ऐसा नहीं किया।
मैं अब कई बार चहक उठता हूं। मुझे यह बुरा नहीं लगता। हां, पहले ऐसा लगता था। वक्त ने बहुत कुछ तब्दील कर दिया, खुद भी बदल गया। बीती बातें उतनी हृदय को चुभती नहीं। क्या यह सब सादाब की वजह से है? शायद ऐसा हो।
जब से उससे मुलाकात हुई है, मैं पहले के कुछ नीरस तरीकों को छोड़ चुका. मैं चुप रहने को महत्व देता था, अब ऐसा नहीं है। हंसना तो दूर किसी और की मुस्कराहट को भी शत्रु समझता था। लोगों से दूर रहने की कोशिश करता था।
आजकल मेरी सोच में परिवर्तन हो रहा है। मैं बदलता जा रहा हूं। दुनिया को खुशनुमा समझने की बात को मैं नकारता आया था, पर अब नहीं।
मेरा संसार सलाखों के पीछे जरुर है, मैं उसे उसी जगह सुन्दर बनाना चाहता हूं। सादाब मुझे मिल गया है। फिक्र को गंभीरता से न लेने की आदत को मैं अपनाने की कोशिश कर रहा हूं।
contd....
-harminder singh
जिंदगी में परिस्थितियां और इनमे टकराने वाले लोग हमारी भावनाओं और प्रतिक्रियों को बदलने में सक्षम होते हैं ...
ReplyDeleteऐसा ही होता दिख रहा है इस कड़ी में