मैं अकेला हूं, सूनसान हूं, वीरान हूं। यह मुझे मालूम है कि मेरा जीवन बीत चुका। कुछ सांसें शेष हैं- कब रुक जाएं क्या पता?
मैंने हर रंग को छूकर देखा है, चाहें वह कितना उजला, चाहें वह धुंधला हो। उन्हें सिमेटा, जितना मुटठी में भर सका, उतना किया। रंग छिटके भी और उनका अनुभव जीवन में बदलाव लाता रहा। मैं बदलता रहा, माहौल बदलता रहा, लोग भी।
चश्मे में मामूली खरोंच आयी। दिखता अब भी है, मगर उतना साफ नहीं। सुनाई उतना साफ नहीं देता। लोग कहते हैं,‘‘बूढ़ा ऊंचा सुनता है।’’ लोग पता नहीं क्या-क्या कहते हैं।
जब जवानी में फिक्र नहीं की, फिर बुढ़ापे में शर्म कैसी?
कुछ लोग यह कहते सुने हैं,‘‘बूढ़ा पागल है।’
हां, बुढ़ापा पागल होता है, बाकि सब समझदार हैं।
जवानों की जमात में ‘कमजोर’ कहे जाने वाले इंसानों का क्या काम? सदा जमाने ने हमसे किनारा किया। हमें बेगाना किया। इसमें अपनों की भूमिका ज्यादा रही।
इतना कुछ घट चुका, इतना कुछ बीत चुका। पर लगता नहीं कि इतनी जल्दी इतना घट गया। जीवन वाकई एक सपने की तरह है। थोड़े समय पहले हम नींद में थे, अब जाग गये। शायद आखिरी नींद लेने के लिए। चैन की अंतिम यात्रा हमारे लिए शुभ हो।
मैं बिल्कुल टूटा नहीं। यह लड़ाई खुद से है जिसे मुझे लड़ना है। समर्पण नहीं करुंगा। संघर्ष मैंने जीवन से सीखा है।
विपत्तियों को धूल की तरह उड़ाता हुआ चलना चाहता हूं। हारना नहीं चाहता मैं। बिल्कुल नहीं। वैसे भी हारने के लिए मेरे पास बचा ही क्या है? इतना कुछ गंवा चुका, बस चाह है मोक्ष पाने की। चाह है फिर से न लौट कर आने की।
बुढ़ापा चाहता है छुटकारा, बहुत सह चुका, बस आराम की चाह है।
-harminder singh
photo: mohit
bilkul sahi kaha hai aapne...
ReplyDeleteजो दुर्घटना से बच पाएंगे।
ReplyDeleteसब एक दिन इसी घर मैं आयेंगे।
मेरे पड़ोस में एक वृद्ध दंपत्ति है ....दोनों ने अपनी जिंदगी को इतना व्यवस्थित कर रखा है कि उन्हें अपनी वृद्धावस्था के बारे में सोचने का वक़्त ही नहीं मिलता ....बेटे बहू उनसे दूर अलग रहते हैं ...मगर जरुरत होने पर उन्हें सँभालने आ जाते हैं ...दोनों की जिंदगी बड़े मजे में चल रही है ...
ReplyDeleteजब हारना नहीं है तो आराम के बारे में सोचना भी क्या ....कुछ देर सुस्ताना और बात है ....!!....!!
बुढ़ापा जीवन का सत्य है. तन जर्जर होना ही है. अपनों का साथ हो तो मन में उत्साह रहा आता है. आपका यह अनुष्ठान वाकई सराहनीय है.
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